ओ तेरी..
चीन की एक ऐसी कुप्रथा जिसमें महिलाओं को विवाह के लिए तोड़ने होते थे अपने पैर, दर्दनाक है यह कहानी
शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बंधने के लिए इंसान पूरे मन और दिल के साथ तैयार रहता है, तभी जाकर वह इस रिश्ते को निभा पाता है. खास तौर पर शादी के लिए महिलाएं ज्यादा उत्साहित रहती है, जो महीनो पहले से अपनी सारी तैयारियां शुरू कर देती हैं. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में शादी विवाह से जुड़ी अलग-अलग परंपराए हैं, पर क्या आपको पता है कि चीन में एक ऐसी कुप्रथा है जहां महिलाओं को विवाह के लिए इस तरह प्रताड़ित किया जाता है कि खुशी तो दूर की बात है, उन्हें केवल दर्द और तकलीफ होती है. यहां पर महिलाओं को विवाह करने के लिए अपने पैर तोड़ने पड़ते हैं. आपको सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन यह दर्द भरी कहानी चीन की है, जहां पर ऐसी प्रथा का आज भी लोग पालन कर रहे हैं. आज हम आपको बताएंगे कि इस प्रथा के पीछे आखिर चीन के लोगों की मानसिकता क्या है और महिलाओं को किन-किन मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है.
चीन में फैली कुप्रथा फुट बाइंडिंग का परिचय
फुट बाइंडिंग चीन की एक पुरानी परंपरा थी, जिसमें छोटी लड़कियों के पैरों के चारों ओर कसकर पट्टियां लपेटी जाती थी, ताकि उनके पैरों का आकार किसी तरह से ना बढ़े. यह काफी दर्दनाक होता था, क्योंकि पैर के अंगूठे को छोड़कर बाकी चारों उंगलियों को नीचे की ओर मोड़कर पत्तियों से कसकर बांध दिया जाता था. उंगलियों की हड्डी मुलायम होती है फिर भी लड़कियों को असहनीय दर्द होता था. यह युवा लड़कियों के लिए एक संस्कार के रूप में देखा जाता है और माना जाता है कि यह यौवन, मासिक धर्म और प्रसव की तैयारी है. यह एक लड़की की आज्ञा मानने की इच्छा का प्रतीक है.
चीन में यह रिवाज लगभग दसवीं शताब्दी से शुरू हुआ था. दक्षिण तांग के राजा ने अपनी पत्नी के लिए 1.8 मीटर लंबा गोल्डन लोट्स बनवाया था, जिसपर उन्होंने मोतिया लगवाई थी. इसे उन्होंने अपनी पत्नी को दिया और कहा कि वह इसे पैर में हाफ मून की तरह बांध ले, फिर नृत्य करें. इसके बाद अन्य महिलाओं ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया. यह रिवाज ज्यादातर 5 से 12 वर्ष की उम्र की बच्ची को निभाना पड़ता है, जिसके तहत महिलाओं के पैरों को पट्टियों से बांध दिया जाता है. इसके लिए खास तौर पर छोटे से जूते भी बनाए जाते हैं ताकि पैर का आकर दो फिट से ज्यादा न हो. इस परंपरा को सुंदरता के साथ जोड़ा जाता है. इतना ही नहीं कई जगहों पर तो पैरों की हड्डियों को तोड़कर उन्हें आकर भी दिया जाता था.
इस प्रथा के खिलाफ कैसे शुरू हुई लड़ाई
19वीं सदी तक चीन में इस तरह की प्रथा चली फिर उसके बाद कुछ जागरूक लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू की, जिसमें ईसाई मिशनरियों का भी कुछ प्रभाव था, जिसके तहत यह बताया गया कि यह कोई फैशन नहीं बल्कि पिछरेपन की निशानी है, जिसके बाद 1912 में चीन में फूट बाइंडिंग पर रोक लगा दी गई. हालांकि प्रबंध केवल कानूनी था. समाज को इसकी ऐसी लत लग चुकी थी कि इसके बाद भी लोटस शू की परंपरा जारी रही. जब कम्युनिस्ट क्रांति शुरू हुई तो इसे लेकर कड़ा रुख अपनाया गया. 1949 में माओ ने फरमान जारी कर दिया कि किसी के पैर बंधे नहीं रहेंगे. उन्होंने देश भर में इंस्पेक्टर नियुक्त किए जिनका काम ही था पैरों पर नजर रखना जहां 1998 में जाकर चीन में लोटस शू बनाने वाली फैक्ट्री बंद हुई. चीन की एक बूढी महिला झोउ गुइजेन चीन में इस फैशन को अपनाने वाली आखिरी महिलाओं में से एक थी.