पवन पुत्र हनुमान जब सीता जी को बचाने के लिए रावण की लंका में पहुंचे थे, तब वहां उनकी पूछ जला दी गई थी. उस वक्त बजरंगबली ने अपनी पूंछ में लगी आग को बुझाने के लिए एक मंदिर का रुख किया था, जो आज भी प्रचलित है. यह बात तो हर कोई जानता है कि उन्होंने अपनी पूछ से पूरी लंका जला दी थी, पर इस दौरान हनुमान जी को भी काफी दर्द हुआ था. तब रामराज्य ने भगवान श्री राम से विनती की जिससे हनुमान जी की जली हुई पूछ का इलाज हो सके. आज हम आपको ऐसी ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर हनुमान जी अपनी जली हुई पूछ में आग बुझाने पहुंचे थे. आज भी यह मंदिर अपने कई कारणो से प्रचलित है, जिसमें दर्शन करने का विशेष महत्व माना जाता है.
चित्र कूट में स्थित हनुमान धारा मंदिर का परिचय : हनुमान जी का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की कर्वी तहसील तथा मध्य प्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है. हनुमान सीतापुर से हनुमान धारा की दूरी तीन मिल है. यह स्थान पर्वतमाला के मध्य भाग में स्थित है. पहाड़ के सहारे हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सर पर दो जल के कुंड है, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है. मूर्ति के सामने तालाब में झरने से जो पानी गिरता है वह हनुमान जी को स्पर्श करता हुआ बहता है, इसलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं. हनुमान धारा मंदिर की जहां से सीढ़ियां शुरू होती है वहां पर आपको बंदर मिलने शुरू हो जाते हैं. वहीं दूसरी तरफ गणेश जी की मूर्ति भी देखने को मिलती है. थोड़ा और ऊपर जाएंगे तो आपको यहां राम, लक्ष्मण और सीता जी की भव्य मूर्तियां देखने को मिलेगी. इसके नीचे एक जलधारा है जिसे आप पी भी सकते हैं. वैसे तो चित्रकूट का स्थान श्री राम के समय से ही काफी लोकप्रिय हो गया था क्योंकि उन्होंने 14 वर्ष के वनवास के दौरान 11 साल चित्रकूट में बिताए थे. यही वजह है कि यहां रोजाना तीर्थ यात्री दर्शन के लिए आते हैं.
हनुमान जी के पूछ की आग बुझाने की कहानी लंका जलाने के बाद जब हनुमान जी श्री राम के साथ अयोध्या वापस लौटे तब उन्होंने कहा है प्रभु लंका को जलाने के बाद तेज अग्नि से उत्पन्न गर्मी मुझे बहुत कष्ट दे रही है. मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं. इस कारण मै कोई अन्य कार्य करने में पीडा़ महसूस कर रहा हूं. कृपया मेरा संकट दूर करें. तब मुस्कुराते हुए श्री राम ने कहा चिंता मत करो, भगवान श्री राम ने हनुमान जी को यह स्थान बताया और कहा कि आप चित्रकूट पर्वत पर जाए. वहां आपके शरीर पर अमृत तुलसी शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको जलन से मुक्ति मिल जाएगी. यहां पहुंचकर हनुमान जी ने विंध्य पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया. जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ. ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गई और उनके शरीर को शीतलता प्राप्त हुई.