धर्म- कर्म
बिहार में मौजूद है भारत का सबसे पुराना मंदिर, बिना रक्त बहाए यहां दी जाती है देवी को बलि
भारत का इतिहास उठाकर देखें तो कई दशकों पहले भी भारत विभिन्न संस्कृतियों और आस्था का सबसे बड़ा केंद्र रहा है. यही कारण है कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में हिंदू देवी- देवताओं के कई छोटे बड़े ऐतिहासिक मंदिर स्थित है, जो आपको हर गली मोहल्ले और चौक पर मिल जाएंगे, लेकिन इस बीच भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है. इसी मंदिर में एक बिहार में मौजूद प्राचीन मुंडेश्वरी मंदिर है जिसका इतिहास पुराना होने के साथ-साथ काफी रोचक भी है. इस मंदिर में बिना रक्त बहाए ही देवी को बलि दी जाती है. आज हम आपको इस खास मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें पंचमुखी शिवलिंग विशेष रूप से काफी चर्चा में रहता है. इस मंदिर के हर कोने में एक अलग ही इतिहास छुपा हुआ है.
बिहार के कैमूर में स्थित मुंडेश्वरी देवी मंदिर का परिचय : बिहार के कैमूर जिले की रामगढ़ गांव के पौनरा पहाड़ में स्थित यह मंदिर भारत के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है. यह लगभग 1700 साल पुराना है. इस मंदिर के चार प्रवेश द्वार थे लेकिन बाद में तीन प्रवेश द्वार को बंद कर दिया गया. बताया जाता है कि यह मंदिर 108 ईसा पूर्व में बनाया गया था और 1915 के बाद इसे संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित कर दिया गया. यहां पर मां वाराही रूप में विराजमान हैं जिनका वाहन महिष है.
कहा जाता है कि इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे जिनकी पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आई थीं और उनका वध करने के लिए जब यहां पहुंची तो सबसे पहले चंड का वध किया. उसके निधन के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था, लेकिन माता इस पहाड़ी पर पहुंचकर मुंड का वध करने में सफल रही. इसी के बाद यह जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां पशु बलि की सात्विक परंपरा है. यहां पर बली के लिए बकरा लाया जाता है लेकिन उसके प्राण नहीं लिए जाते. जब बकरे को माता के सामने लाया जाता है तो पुजारी मां की मूर्ति को स्पर्श कर कुछ चावल बकरा पर फेंक देते हैं जिससे बकरा बेहोश हो जाता है. फिर थोड़ी देर के बाद उस पर अक्षत फेखने की प्रक्रिया होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है. बस यही करने से बली की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. यहां भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है जो तीन दिन में एक बार रंग बदलता है, जिसके रहस्य के बारे में आज तक कोई नहीं पता लगा पाया है.
इस मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमई बातें
1. मंदिर में रखी मूर्तियां उत्तर गुप्तकालीन हैं और यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है.
2. इस मंदिर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की मूर्ति भी स्थापित है.
3. पूजा करने के अलावा बिहार की संस्कृति और व्यंजनों का भी यहां पर लुफ्त उठा सकते हैं.
4. मां मुंडेश्वरी मंदिर के बीचो-बीच गर्भगृह में यह शिवलिंग स्थापित है जो बेहद प्राचीन है. इसका रंग सुबह अलग होता है. दोपहर में अलग और शाम को अलग रंग में हो जाता है.
5. इस मंदिर का संबंध मार्कंडेय पुराण से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि माता के द्वार पर आकर जो भक्ति का प्रसाद मिलता है, वह एक अनोखा अहसास होता है.