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एक ऐसा शिव मंदिर जहां भक्त चाहकर भी नहीं बना पाए छत, मनोरम है इस मंदिर की कहानी

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देश के अलग-अलग हिस्सों में भगवान शिव के कई ऐसे मंदिर हैं जिनसे लोगों की खास तौर पर आस्था जुडी हुई है. अपने आप मे कई मंदिर अदभुत होने के कारण चमत्कारी भी हैं पर आज हम आपको महादेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां चाहकर भी शिव भक्त यहां पर छत नहीं बना पाए. इस मंदिर का ऊपरी शिखर खाली है. कोई भी इसे पूरा नहीं करवा पाया. इसके साथ ही इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी पौराणिक कहानी है जो इस मंदिर को बाकी अन्य मंदिरों से अलग और रहस्यमई बनाती है.

ताड़केश्वर महादेव मंदिर का परिचय
भगवान शिव का यह मंदिर गुजरात के वलसाड जिले में स्थित है, जो करीब 800 साल पुराना है. इस मंदिर में रोज सूर्यभिषेक होता है. भगवान सूर्य स्वयं मंदिर में स्थित महादेव का अभिषेक करते हैं तथा इस मंदिर को महादेव के सिद्ध पीठ में से एक कहा जाता है. ताड़केश्वर महादेव मंदिर देवदार के पेड़ों व शांत वातावरण से घिरा हुआ है. यह स्थान ऋषियों के लिए एक सर्वोत्तम धार्मिक स्थान है.
स्थानीय किवंदितियों के अनुसार मंदिर का निर्माण राजा भारमल्लव राम ने तारकेश्वर के पास जंगलों में एक लिंग की खोज की थी. बाद में यह मंदिर 1729 ईस्वी में स्वयंभू लिंग जिसे बाबा तारकनाथ कहा जाता है, उसके चारों ओर बनाया गया था.
सभी मंदिरों की तरह इस मंदिर में भी आम भक्तों द्वारा छत बनाया जा रहा था, पर कुछ ही दिनों में इसका शीला ढ़ह जाता. ऐसा बार-बार होता देख हर कोई हैरान रह गया. इसके बाद ग्वाले को एक बार भगवान शिव का सपना आया जिन्होंने सपने में यह बताया कि मंदिर के ऊपर कोई छप्पर या शिखर नहीं बनाया जाए. फिर ग्रामीणों ने शिखर बनाने का प्रयास करना छोड़ दिया और इसे हमेशा के लिए खुला रखा, ताकि सूर्य देवता शिवलिंग का अभिषेक करते रहे. दरअसल इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा काफी मशहूर है. अब्रामा गांव के एक ग्वाला की गाय झुंड से अलग होकर एक निश्चित स्थान पर जाकर खुद से ही दूध की धारा प्रवाहित करती थी. ऐसा हर रोज होता था. जब ग्वाले ने इस बात को गांव के बाकी लोगों के साथ बताया तब सभी गांव वालों ने वहां जाने का निश्चय किया और जब वहां जाकर देखा तो उस स्थान के गर्भ में एक पावन और अद्भुत शीला विराजमान थी फिर हर रोज ग्वाले द्वारा पवित्र शीला का अभिषेक किया जाने लगा जिससे शिवजी प्रसन्न होकर उसके सपने में आए और कहा कि उसे घने जंगल से उसे हटाकर किसी पवित्र स्थान पर विस्थापित करें. जब इस बारे में गांव वालों को ग्वाले ने बताया तो वहां खुदाई का काम शुरू हुआ और करीब 7 फीट लंबा पवित्र शीला मिला जिसे गांव में ही विधि विधान से विस्थापित किया गया और एक मंदिर बनाया गया.

मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमई बातें
1. इस मंदिर के परिसर में एक कुंड है. ऐसी मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था.

2. तारकासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी.

3. तारकासुर के वध के पश्चात भगवान शिव यहां विश्राम कर रहे थे. इसी दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज कारणे पड़ रही थी जिससे बचने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुई.

इस मंदिर का छत ऊपर से खुला हुआ है.

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