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सनातन संस्कृति में जीते जी भी मनुष्य कर सकता है अपना श्राद्ध, वजह जान चौंक जाएंगे आप

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हमारे सनातन संस्कृति में अक्सर यह देखा जाता है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद उस व्यक्ति का पूरे विधि अनुसार श्राद्ध किया जाता है जिससे मृतक की आत्मा को मुक्ति मिलती है. अक्सर हमने यह सुना है कि मरने के बाद ही श्राद्ध किया जाता है पर गरुड़ पुराण की माने तो मनुष्य जीते जी भी अपना श्राद्ध कर सकता है. आज हम आपको बताएंगे कि गरुड़ पुराण में किस प्रकार यह बताया गया है कि मनुष्य जीते जी अपना श्राद्ध क्रम कर सकता है और उसके पीछे की वजह क्या है.

गरुड़ पुराण का परिचय
जब हिंदू धर्म के 18 पवित्र पुराणो की बात आती है तो उसमें गरुड़ पुराण का नाम जरूर आता है जो वैष्णव संप्रदाय से संबंधित एक महापुराण है. इसे वैष्णव पुराण भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान श्री हरि विष्णु को इस पुराण के अधिष्ठतृ देव माना गया है. गरुड़ पुराण में हमें कई तरह की शिक्षाएं मिलती है. इसमें मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है. गरुड़ पुराण में कुल 16 अध्याय है. इसमें भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ भगवान से कुछ प्रश्न पूछते हैं. पक्षियों के राजा गरुड़ भगवान से दो विषयों पर प्रश्न करते हैं. पहले यह की नरक कौन जाता है और वहां किस प्रकार की यातनाएं दी जाती है. दूसरा यह कि स्वर्ग में सुख क्या है और उनका हकदार कौन है. गरुड़ पुराण के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी हैं.

जीते जी अपना श्राद्ध करने की विधि
यह बात तो हर कोई जानता है कि जिसने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उसे एक न एक बार मरना ही है. जब एक बार पक्षी गरुड ने विष्णु देव से यह पूछा कि क्या कोई मनुष्य अपने जीवन काल में अपना श्राद्ध कर सकता है और ऐसा करना उचित है कि नहीं. तब पक्षी राज गरुड़ की इस बात को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि यदि मृतक मनुष्य का कोई अधिकारी व्यक्ति ना हो यानी कि उसके ऊपर किसी के अधिकार का निश्चय नहीं हो रहा है. ऐसी स्थिति में मनुष्य को अपने जीवन काल में स्वयं का श्राद्ध कर लेना चाहिए. यदि कोई जीते जी अपना श्राद्ध सही तरह से संपन्न करता है तो उसे मृत्यु के पश्चात वही स्थान प्राप्त होता है जो उसके परिजनों के द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म से मिलती है. ऐसा करने के लिए एक निश्चित तिथि के दिन उपवास रख के श्राद्ध कम किया जा सकता है. फिर श्राद्ध करके भगवान विष्णु की पूजा करें. पूजा संपन्न होने के बाद वह अपने पृतगणों के लिए तिल एवं दक्षिण से जल पात्र करें जिस दौरान ओम पितृभ्य स्वधा मंत्र के उच्चारण के साथ एक स्थान पर रखें. इस बात का ध्यान रखें कि पहला जल पात्र उत्तर दिशा में दूसरा दक्षिण दिशा में और उन दोनों जल पत्र के बीच तीसरा जल पात्र रखा जाए. इससे पहले दो जल पत्रों को दान करते समय ओम अग्नये कव्यवाहनाय स्वधा नम: तथा ओम सोमाय त्वा पितृमते स्वधा नम: का उच्चारण करते हुए दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दक्षिणा सहित तीसरा जल पात्र का दान दे. ऐसा करने से श्राद्ध कर्ता कई तरह के महापाप से मुक्त होता है.

लोग अपना श्राद्ध जीते जी क्यों करते हैं इसकी कुछ महत्वपूर्ण वजह
1. जीते जी वही व्यक्ति श्राद्ध करता है जिसके परिवार में कोई भी पुत्र, पौत्र ना हो और मरणोपरांत इस प्रक्रिया को करने वाला कोई व्यक्ति मौजूद न हो.

2. जीते जी अपना श्राद्ध करने से मनुष्य को उसी फल की प्राप्ति होती है जो मरने के बाद उसके परिजनों द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म से प्राप्त होती है.

पिंडदान करता वायक्ती.

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