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लोकतांत्रिक तरीके से अधिक मत प्राप्त करने के बावजूद कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बन पाए सुभाष

किस्सा- कहानी

लोकतांत्रिक तरीके से अधिक मत प्राप्त करने के बावजूद कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बन पाए सुभाष

आपने शायद ही ये बात सुना होगा कि कोई चुनाव जीते और फिर उसके बाद इस्तीफा दे दे पर कई बार जब बात इंसान को मानसिक रूप से परेशान करने लगती है तो अंत में उसके पास कोई विकल्प नहीं बचता. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उनकी विचारधारा महात्मा गांधी से काफी अलग थी. यही वजह थी कि जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए उन्हें अधिक मत प्राप्त हुए और वह विजय हुए तो यह बात महात्मा गांधी को रास नहीं आई. जैसे ही सुभाष चंद्र बोस को यह पता चला उन्होंने बिना कुछ कहे इस्तीफा दे दिया और फिर कभी दोबारा मुड़कर कांग्रेस की तरफ नहीं देखा. आज हम बताएंगे कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या थी और महात्मा गांधी सुभाष चंद्र बोस की जगह किसे कांग्रेस अध्यक्ष पद पर देखना चाहते थे, जिस कारण उन्होंने नाराजगी जाहिर की थी.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का छोटा परिचय
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था. वह प्रारंभ से ही राजनीति परिवेश में पले बढे़ थे जिसका प्रभाव उन पर नजर आता था. सुभाष  विदेश की सिविल सेवा की नौकरी को ठोकर मारकर मां भारती की सेवा करने की ठानी और भारत लौट आए. यहां आने के बाद सुभाष चंद्र बोस अपने राजनीतिक गुरु देशबंधु चितरंजन दास से ना मिलकर गुरु रविंद्र नाथ टैगोर पर के कहने पर महात्मा गांधी से मिले. अहिंसा के पुजारी गांधी सुभाष के हिंसा वादी व उग्र विचार से असहमत थे जहां गांधी उदार दल के नेतृत्व कर्ता के रूप में अगुवाई करते थे. वही सुभाष जोशीले व्यक्ति के रूप में अपने प्रतिक्रिया देने के लिए विख्यात थे. 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद नेताजी ने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया. सुभाष चंद्र और गांधी जी के विचार बिल्कुल अलग थे लेकिन मकसद एक था भारत की आजादी.

सुभाष चंद्र बोस को दूसरी बार अध्यक्ष बनने से महात्मा गांधी ने क्यों रोक लिया
महात्मा गांधी यह चाहते थे कि कांग्रेस का अध्यक्ष पद उस व्यक्ति को मिले जो देश में सांप्रदायिक माहौल को बेहतर बना कर रख सके. यही वजह है कि उनकी पहली पसंद मौलाना अबुल कलाम आजाद थे लेकिन मौलाना अबुल कलाम आजाद सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. वजह यह थी कि सुभाष  की लोकप्रियता उस वक्त बहुत अधिक तेज थी. उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. जब मौलाना ने चुनाव लड़ने से मना किया तो महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बनवाना चाहते थे लेकिन अध्यक्ष पद की दावेदारी अंत तक पट्टाभि सीताराम्या ने की. कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर वोटिंग हुई और अंतत: जीत सुभाष की हुई लेकिन वोटिंग में उन्हें महात्मा गांधी का वोट नहीं मिला. यहां तक की चुनाव से पहले सुभाष चंद्र बोस को ये भी कहा गया कि वह चुनाव से नाम वापस ले लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. चुनाव के नतीजे आने के बाद जब गांधी जी ने यह कहा कि पट्टाभि की हार मेरी हार है तो दोनों पक्ष में कड़वाहट बढ़ गई और इस अधिवेशन के बाद अप्रैल महीने में सुभाष चंद्र बोस ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. यहीं से सुभाष चंद्र बोस ने अलग राह पकड़ी और फिर उनकी कांग्रेस में कभी वापसी नहीं हुई.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के बाद सुभाष चंद्र बोस.

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