हिंदू धर्म में हर महीने कोई ना कोई त्योहार जरूर आता है जिसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, पर कुछ पर्व ऐसे होते हैं जिसकी मान्यताएं बहुत खास होती हैं और इससे स्त्रियों की खास तौर पर आस्था जुड़ी होती है. हिंदू धर्म में अश्विनी मास का विशेष महत्व होता है जिसमें जितिया व्रत मनाया जाता है. माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए जितिया का व्रत रखती है, जो पूरी कड़ाई से नियमों के पालन के साथ किया जाता है. इसमें महिलाओं को व्रत के दौरान कई खास बातों का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि उनसे किसी प्रकार की कोई गलती ना हो. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर जितिया पर्व की शुरुआत कब हुई और इसके पीछे मान्यता क्या है.
जितिया पर्व का परिचय अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत मनाया जाता है. इस दिन मिठाई, फल और एक विशेष व्यंजन खस्ता आदि का प्रसाद चढ़ाकर महिलाएं शाम के समय किसी पोखर, तालाब या नदी के किनारे पूजा पाठ करके सूर्य को अर्घ्य देती है. इस पर्व में माताएं गले में एक माला पहनती है जो पीले और लाल रंग से बनी होती है और वह रेशम के धागे का होता है. समय-समय पर इसके धागे को बदल दिया जाता है. यह पर्व तीन दिनों तक चलता है. इस पर्व की शुरुआत नहाए खाए से होती है. नहाए खाए के अगले दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और फिर इसके अगले दिन पारण के साथ इसकी समाप्ति होती है. जितिया व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी हुई है. महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु से बेहद नाराज था. उसी क्रोध के चलते उसने पांडव समझकर पांडवों के पांचो पुत्र को मार डाला. फिर अर्जुन ने अश्वत्थामा के सिर में लगी मनी को छीन लिया था जिसके बाद अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को मार डाला. ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्य के बदले उत्तरा के अजन्मे पुत्र को पुनः जीवित किया था. भगवान कृष्ण की कृपा से जीवित हुए इस पुत्र को जीवित्पुत्री का नाम दिया गया. यही बालक आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ तभी से माताएं अपनी संतानों की लंबी उम्र और अच्छी स्वास्थ्य के लिए जितिया व्रत रखने लगी और यह परंपराएं शुरू हो गई. इस दिन सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें.
जितिया पर्व 2023 के शुभ मुहूर्त इस बार 6 अक्टूबर को सभी माताए जितिया व्रत कर रही है. 5 अक्टूबर को इससे पहले नहाए खाए का व्रत है और फिर अष्टमी तिथि की शुरुआत 6 अक्टूबर को सुबह 6:34 से होकर 7 अक्टूबर को सुबह 8 मिनट तक रहेगी. इस दिन माताएं अपने संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए निर्जला व्रत करती है. तीन दिनों तक यह त्योहार बड़े ही विधि विधान से मनाया जाता है. इसके बाद पारण की शुरुआत 7 अक्टूबर को सुबह 8:10 के बाद होगी.