धर्म- कर्म
त्रेताकालीन है औरंगाबाद का यह सूर्य मंदिर, प्रभु राम ने मिथिला जाते वक्त कराया था इसका निर्माण
बिहार के कोने-कोने में कई ऐसी चीज देखने को मिलती है जिसका ऐतिहासिक महत्व काफी ज्यादा है. वैसे तो बिहार शिक्षा और संस्कृति का कई दशक से केंद्र रहा है, पर यहां पर कई ऐसे अनोखे मंदिर भी रह चुके हैं जिसे देखने के लिए आज दुनिया के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं. जब बात बिहार की होती है तो बिहार के औरंगाबाद के इस खास मंदिर की जरूर चर्चा होती है जिसे मिथिला जाते वक्त प्रभु श्री राम ने जिसकी स्थापना की थी. इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी रोचक और रहस्यमई बातें हैं जो इस मंदिर को और भी ज्यादा खास बना देती है. इसकी वास्तुकला और इसका इतिहास आज भी कई ऐसी बातों को दर्शाता है जो शायद किसी अन्य मंदिर में आपको देखने को नहीं मिल सकता. आज हम बताएंगे कि किस तरह इस मंदिर का निर्माण हुआ और आखिर इस मंदिर से जुड़ी रोचक बातें क्या है.
बिहार के औरंगाबाद स्थित देव सूर्य मंदिर का परिचय
मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर जो ब्रह्म ही लिपि में श्लोक लिखा है उसके मुकाबले यह पता लगता है कि इस मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष पहले त्रेता युग में हुआ था. यह मंदिर करीब एक सौ फीट ऊंचा है. बिना सीमेंट और चुना का प्रयोग किए आयातकर, वर्गाकार ,अर्धवृद्धाकर, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर यह बनाया गया है, जो देखने में काफी आकर्षक लगता है. इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. इस मंदिर की परंपरा के अनुसार प्रत्येक दिन सुबह 4:00 बजे घंटी बजाकर भगवान को जगाया जाता है. उसके बाद उनकी प्रतिमा को स्नान कराया जाता है. फिर उनका श्रृंगार होता है. त्रेता युग में जब रावण का वध करने के पश्चात भगवान राम राजा बने तो माता सीता के साथ वह मिथिला आए थे. इसी दौरान भगवान श्री राम ने मिथिला जाने के क्रम में यहां रुक कर भगवान सूर्य के इस मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर का निर्माण आठवीं से नौंवी सदी के बीच हुआ था. त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला पुत्र ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया था. यहां पर घोडे़ पर सवार सूर्य भगवान के तीनों रूपों की पूजा होती है जहां अपनी मुराद पूरी होने के बाद लोग छठ के समय आकर दर्शन करते हैं.
इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें
1. यह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर से है.
2. यहां पर एक सूर्यकुंड भी है जहां पर स्नान करने का विशेष महत्व है जिसमें सूर्य देव की आराधना की जाती है.
3. महर्षि कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म हुआ था. इसी देवस्थान से सभी ने छठ पर्व प्रारंभ किया.
4. एक बार औरंगजेब मंदिर को तोड़ने के लिए वहां पहुंचा था. इसके बाद उसने शर्त रखी कि यदि सच में यहां भगवान है, यहां शक्ति है और मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम में हो जाए तो मैं मंदिर नहीं तोडूंगा. रातों-रात ऐसा ही हुआ.
5. इस मंदिर पर सोने का एक कलश है. यह सोने का कलश यदि कोई चुराने की कोशिश करता है तो वह उससे चिपक कर रह जाता है.