दुनिया में महादेव के न जाने कितने ऐसे विशाल और रहस्यमई मंदिर हैं जो अपने अलग-अलग रहस्यों के कारण भक्तों का हमेशा ध्यान आकर्षित करता है. महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा भी उनकी कई ऐसी मंदिर काफी प्रचलित है जिनसे भक्तों की मान्यताएं जुड़ी हैं. इस मंदिर में जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं भोलेनाथ उन्हें बिल्कुल भी निराश नहीं करते हैं. आज हम महादेव की एक ऐसी ही मंदिर के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसका दरबार पूरी दुनिया में सबसे ऊंचा है. सबसे खास बात तो यह है कि यहां भगवान शिव के भुजाओं की पूजा की जाती है जिसकी खास मान्यता है. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह इस मंदिर की स्थापना हुई और इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है.
उत्तराखंड के तुंगनाथ पर्वत पर तुंगनाथ महादेव मंदिर का परिचय उत्तराखंड में भगवान शिव को समर्पित पंच केदार है, उसी में तीसरा स्थान तुंगनाथ महादेव मंदिर का है जिसका निर्माण आज से हजारों वर्ष पूर्व महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था. यह मंदिर हिमालय की पहाड़ियों पर अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों के बीच स्थित है. इस मंदिर के ऊपर प्रसिद्ध चंद्र शीला पहाड़ी भी है जिसका संबंध भगवान श्री राम से है. इस मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों से किया गया है जिसके अंदर काले पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है. मंदिर के अंदर प्रवेश द्वार पर भगवान शिव की सवारी नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए हुए हैं. मंदिर के अंदर शिवलिंग के पास काल भैरव, महर्षि व्यास की अष्टधातु से बनी मूर्ति स्थापित की गई है. इसके अलावा पांडवों की नक्काशी भी दीवार पर देखने को मिलती है. महाभारत के युद्ध में पांडवों के विजय होने पर उन पर अपने कुल के भाइयों की हत्या का आरोप लगा जिस कारण पांडव भगवान कृष्ण के कहने पर भातृ हत्या पाप से मुक्ति पाने हेतु भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे. मगर भगवान शिव इस बात से नाराज थे इसलिए उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे. उसके बाद पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय की केदार नामक शृंखला पर जा पहुँचे. इसके बाद भगवान शिव बैल का रूप धारण करते हुए एक झुंड में शामिल हो गए. महाबली भीम दो विशाल चट्टानों पर पांव रखकर इस तरह खड़े हो गए कि भैंस उनके पांव के बीच से निकल जाए. सामान्य भैंसों ने यही किया परंतु शिव भगवान जो छद्दम रूप से भैंस का रूप धारण किए हुए थे उन्हें यह अपमानजनक लगा, इसीलिए उन्होंने अपना सर जमीन पर मार दिया. उनका सर तो पशुपतिनाथ निकला परंतु महाबली भीम ने महर्षि रूप धारी शिव की पूछ पकड़ ली. इस संकल्प को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने पांडवों को दर्शन देकर पाप मुक्त कर दिया. इसी प्रकार शिव की भुजाएं तुंगनाथ में निकली. यहां बैल के रूप में भगवान शिव के हाथ दिखाई दिए थे जिसके बाद पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था तभी से इस मंदिर में भगवान शिव के भुजाओं की पूजा होती है.
तुंगनाथ महादेव मंदिर की कुछ रोचक बातें 1. तुंगनाथ मंदिर से तीन झरने निकलते हैं जिनसे अक्ष कामिनी नदी का निर्माण होता है .
2. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि रावण ने शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी.
3. जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तब स्वयं को ब्रह्म हत्या के श्राप से मुक्त करने के लिए श्री राम ने इसी स्थान पर शिवजी की तपस्या की.
4. समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर रावण शीला मौजूद है. कहा जाता है कि तुंगनाथ की यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब चंद्रशिला के दर्शन पूरे होते हैं.
5. इस जगह को मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है. भारी बर्फबारी के चलते यह मंदिर नवंबर और मार्च के बीच बंद रहता है.