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समाज में लड़कियों को लड़कों से हमेशा कम आंका गया, आज पूरा विश्व माना रहा है अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस

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देश में बेटियों को आगे लाने के लिए और उनकी भागीदारी निश्चित करने के लिए सरकार और तरह-तरह के संगठन संगठनों द्वारा कई मुहिम चलाई जा रही है. इसके बावजूद भी आज भी महिलाएं कहीं ना कहीं घर की तहलीज से बाहर नहीं निकल पा रही है. वजह यह है कि समाज में लड़कियों को लड़कों से हमेशा कम आंका जाता है. उन्हें केवल घरेलू काम के लिए उचित समझा जाता है. कई बार कुछ लड़कियां जब इसके लिए इच्छा जाहिर करती है तो उनकी आवाज को दबा दिया जाता है. भारत समेत कई देशों में कहीं ना कहीं देखा जाए तो महिलाओं की स्थिति समान है. जन्म से ही परिवार में उनकी स्थिति, उनकी शिक्षा के अधिकार और उनके करियर के विकास में कई चुनौतियां सामने आती है. बालिका दिवस का उद्देश्य इस तरह की चुनौतियों को दूर करने के लिए जागरुकता फैलाना है, ताकि दुनिया भर में उनके सामने आने वाली चुनौतियां का वह सामना कर सके और अपनी जरूरत को पूरा कर सके. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस लड़कियों की जिंदगी में एक बहुत बड़ा बदलाव ला रहा है और इससे उन्हें किन-किन क्षेत्रों में भागीदारी के अवसर मिल रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का परिचय
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के तहत बेटियों के महत्व को समझाया जाता है. यह दिन बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लिंग आधारित चुनौतियों को समाप्त करता है, जिसका सामना आज दुनिया भर की लड़कियां करती है, जिसमें बाल विवाह, उनके प्रति भेदभाव और हिंसा शामिल है. जिसे कई जगहों पर सेमिनार और वेबीनार, सोशल मीडिया कैंपेन करके मनाया जाता है. हर साल 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में बालिकाओं के अधिकारों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. इस दिन महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में और महिला सशक्तिकरण के प्रति जागरूक किया जाता है.

आज के आधुनिक माहौल में बच्चियों के खिलाफ हो रहे तीन अहम भेदभाव
महिलाओं को घरेलू तथा सामाजिक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे चाह कर भी आज कई लोग बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

1. आज के समय में एक सामान्य सी चीज देखने को मिलती है कि 10वीं व इंटर की पढ़ाई के बाद उच्च कक्षाओं के लिए केवल लड़कों को भेजा जाता है, क्योंकि लड़कियों की पढ़ाई यहीं पर खत्म हो जाती है. कुछ लड़कियां चाह कर भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती है, क्योंकि इसके बाद या तो उन्हें घर के कामों में लगा दिया जाता है या फिर उनकी शादी कर दी जाती है.

2. आज कई परिवारों में घर की महिलाओं का केवल काम, खाना पकाना या बच्चों का पालन पोषण करने में जीवन बीत जाता है. देश की आर्थिक आय में उनका कोई योगदान नहीं होता. इतना ही नहीं उनके पास परिवार में निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं होती. उन्हें बस पुरुषों के निर्णय का पालन करना होता है. यह महिलाएं अपने खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पाती है.

3. इन सबके अलावा पहनावा, खेल, भोजन, घूमना फिरना और कई तरह की चीजों में महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. यदि एक घर में एक भाई और एक बहन है. यह महसूस किया जाता है कि एक भाई को जिस तरह के कपड़े पहनने को मिलते हैं और जिस तरह की उसकी खान-पान है, एक लड़की को उससे वंचित रखा जाता है. केवल उसकी जरूर की चीजे पूरी होती है.

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