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पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने की वजह से माता का नाम पड़ा था शैलपुत्री, ऐसे प्रारंभ करें पूजा

धर्म- कर्म

पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने की वजह से माता का नाम पड़ा था शैलपुत्री, ऐसे प्रारंभ करें पूजा


हर साल जब भी नवरात्रि की शुरुआत होती है तो लोग बड़े ही धूमधाम से माता रानी का स्वागत करते हैं और उनकी पूरे विधि विधान से पूजा करते हैं. नवरात्रि में पहले दिन से लेकर 9 दिन तक माता रानी के भोग से लेकर उन पर अर्पित किए जाने वाले फूल तथा अन्य कई चीजों का खास तौर पर ध्यान रखा जाता है. पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लेने वाली माता शैलपुत्री के पूजा पाठ करने को लेकर एक खास विधि है, जिसका यदि आप पालन करते हैं तो आपको इसका फल मिलता है. यह बात कम लोग जानते हैं कि शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. इस बार का नवरात्र काफी ज्यादा शुभ है क्योंकि यह शुक्ल व ब्रह्म युग के अद्भुत सहयोग में शुरू हो रहा है, जिसमे काफी उत्तम फल मिलता है. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है और इसके लिए शुभ मुहूर्त क्या है. साथ ही साथ पूजा पाठ के दौरान हमें किन बातों का ध्यान रखना होता है.

मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री का
इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी. अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार मां शैलपुत्री पर्वत राज हिमालय की पुत्री है और मां शैलपुत्री स्वरूप की पूजा देवी के मंडप में पहले नवरात्र के दिन होती है. माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहद शांत और सरल है. माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल शोभा दे रहा है. मां अपने नंदी नामक बैल पर सवार होकर संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है. इसलिए माता शैलपुत्री को वृषोरूढा़ और उमा के नाम से भी जाना जाता है. मां ने श्वेत रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं. नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा के दौरान सफेद रंग अति शुभ माना जाता है, क्योंकि शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत प्रिय है. श्वेत रंग शुद्धता और शांति का प्रतीक माना जाता है जिसे धारण करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है. माता शैलपुत्री को गाय का घी अथवा उससे बने पदार्थ का भोग लगाया जाता है, जिससे माता खुश होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है. आप माता को बादाम के हलवे जो की गाय के घी से बना हो उसका भोग लगा सकते हैं. माता शैलपुत्री की पूजा करने के लिए आप सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित कर पूजा करें. नवरात्र में इस बार कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त है. नवरात्रि से पहले बारिश संकेत दे रही है कि इस बार मां दुर्गा का आगमन हाथी पर हो रहा है. सोमवार को घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:11 से 7:51 तक रहेगा. इसके बाद अभिजीत मुहूर्त में भी घट स्थापना की जा सकती है. सुबह 11:45 से दोपहर 12:36 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा.

माता शैलपुत्री की पूजा करने से मिलने वाले चार प्रमुख लाभ
1. कहते हैं पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से मां के नौ रूप का आशीर्वाद मिल जाता है. देवी अपने भक्तों को हर मुश्किलों से उबार लेती है.

2. अगर सही मुहूर्त में कुछ खास विधि विधान के साथ मां के मंत्रों का जाप कर लिया जाए तो देवी इच्छाओं की पूरा होने का वर देती है.

3. जो लोग बेरोजगार हैं या जिन लोगों को संतान की खुशी नहीं मिल रही है उनका जीवन खुशियों से महक जाता है और रोगियों को निरोग होने का आशीर्वाद मिलता है.

4. पूरे मन से माता की पूजा करने से घर में निश्चित रूप से समृद्धि का वास होता है.

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