पूरी दुनिया में काशी धार्मिक नगरी के तौर पर पहचानी जाती है. यहां पर देवी- देवताओं को मिलाकर कुल हजारों ऐसे मंदिर है जिसकी अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन इसमें कई ऐसे असाधारण मंदिर है जहां पर सालों भक्तों की भीड़ लगी रहती है. इसी में एक मंदिर मां कालरात्रि का मंदिर है. वैसे तो इस मंदिर में सालों भिड़ लगी रहती है लेकिन विशेष तौर पर नवरात्रि के दिन यहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिलती है. कहा जाता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों को अकाल मृत्यु से बचाती है और उनकी रक्षा करती है. वाराणसी का ये मंदिर मां कालरात्रि को समर्पित है. कालरात्रि मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है जिनका शरीर बिल्कुल काली जैसा है. उनके बाल अस्त व्यस्त हैं. इनके गले में बिजली के समान चमकने वाली माला है. वह अपने नाक से लगातार आग की लपटे छोड़ती रहती है. आज हम आपको बताएंगे कि वाराणसी के मां कालरात्रि मंदिर की खासियत क्या है और यहां विशेष तौर पर पूजा पाठ करने का महत्व क्या है.
वाराणसी के मीरघाट क्षेत्र में स्थित कालरात्रि मंदिर का परिचय वाराणसी के मीरघाट के समीप मां कालरात्रि का मंदिर स्थित है. कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में शीश झुकाता है, उसकी सभी मन्नत पूरी होती है. चार भुजाओं वाली माता का स्वरूप दिखने में जितना विकराल लगता है, असल में उतना है नहीं. माता काफी सरल स्वभाव की है और उनके दर्शन मात्र से ही सभी नकारात्मक शक्तियां दूर चली जाती है. पुरानी कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने माता पार्वती से मजाक करते हुए कहा कि देवी आप सांवली लग रही है और इस पर माता नाराज होकर काशी में इसी प्रांगण में चली गई और सैकड़ो वर्षों तक कठोर तपस्या की. इसके बाद फिर माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ इस पवित्र स्थान पर आकर माता से बोले कि चलिए देवी आप गोरी हो गई और माता को कैलाश ले गए. मंदिर में केदारेश्वर का शिवलिंग भी है और दो शेरों की मूर्तियां है जिसमें एक चलने वाला और एक दूसरा उड़ने वाला शेर शामिल है. कहा जाता है कि मां कालरात्रि मनेरिया वंशियों की कुलदेवी थी इसलिए लोग मंदिर के भाव में उनकी पूजा सोने चांदी की प्रतिमा बनवाकर करने लगे. अंतत: इस वंश के लोगों ने पुनः अपने आराध्य देवी का मंदिर निर्माण 2003 में करवाया. इस मंदिर में लोग बली स्वरूप नारियल माता को चढ़ाते हैं.
महाकाल रात्रि का परिचय, भक्त क्यों करते हैं उनकी पूजा नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है. इस देवी के तीन नेत्र है. यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल है. उनके हाथों में खड़ग और कांटा है. साथ ही उनका वाहन गधा है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने के लिए जानी जाती है, इसलिए इनका नाम कालरात्रि है. कहा जाता है जो भी भक्त नवरात्रि के सातवें दिन विधि विधान से पूजा करते हैं उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. ऐसा करने से दुश्मनों का नाश होता है और तेज बढ़ता है. इसके साथ व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता.
इस प्रकार भक्तों को मिलता है आशीर्वाद 1. मां कालरात्रि को लाल रंग की चीजे पसंद है. मां को गुड़ या गुड से बनी चीजों का भोग जरूर लगाए जिससे मां प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देती है.
2. नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि के बीज मंत्रो का जाप करें. ऐसा करने से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती है.
3. देवी मां कालरात्रि की पूजा पाठ के दौरान पेठा का भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से बल और विजय की प्राप्ति होती है.
4. देवी के नाम का जाप बहुत ही लाभकारी माना गया है. नवरात्रि की सप्तमी तिथि की रात में इस नाम का 108 बार जाप करना चाहिए. ऐसा करने से मनुष्य की जो भी परेशानी है वह खत्म हो जाती है.