धर्म- कर्म
शनि देव के इस दिव्य मंदिर में पिछले 35 वर्षों से जल रही है अखंड ज्योति, दर्शन मात्र से दूर होंगे सभी कष्ट
शनि की दृष्टि जिस पर होती है वह व्यक्ति दुनिया को जीतने की ताकत रखता है, पर अगर इसके विपरीत शनि का प्रकोप रहता है तो राजा को रंक बनने से भी कोई नहीं रोक सकता है. यही वजह है कि शनि देव की महिमा निराली है. वैसे तो देश में शनि भगवान के कई ऐसे मंदिर है पर इस बीच प्रतापगढ़ में उनका एक ऐसा मंदिर स्थित है जो अपने कई पौराणिक रहस्यों के कारण प्रचलित है. कहा जाता है कि यहां न्याय के देवता शनिदेव का दर्शन करने से मानव की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और शनि के प्रकोप से भी उसे मुक्ति मिलती है. इस बात से इसका प्रमाण मिलता है कि इस शनि देव के मंदिर में लगभग 35 सालों से अखंड ज्योत जल रही है. कहा जाता है कि शनि देव का यह मंदिर 1200 वर्ष से अधिक पुराना है जिसकी अपनी एक अलग महिमा है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर इस मंदिर की खासियत क्या है जिस वजह से यह इतना लोकप्रिय है. इस मंदिर से भक्तों की जुड़ी मान्यताएं किस प्रकार है.
उत्तर प्रदेश के प्रातापगढ़ जिले में स्थित शनि मंदिर का परिचय
प्रयागराज जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ मार्ग पर शनि देव का यह मंदिर स्थित है. इस मंदिर की स्थापना 1985 में प्रतापगढ़ जिले के कटरा मोदिनी गंज के जलालपुर ग्राम निवासी परमा महाराज ने कराई थी. बकुलाही नदी के किनारे इस मंदिर में शनि देव की काले पत्थरों से बनी प्रतिमा स्थापित है. कुशफरा नामक स्थान प्रयागराज से जाने पर विश्वनाथगंज बाजार से पूर्व दिशा में तकरीबन 3 किलोमीटर जाने पर पड़ता है. कहा जाता है कि परम महाराज के बेटे मंगलाचरण मिश्रा के मुताबिक महाराज जी को स्वप्न में शनि देव के दर्शन हुए और उन्हें अपने स्थान पर आने के लिए कहा. जब वहां पर ढूंढा गया तो झाड़ियां के बीच में शनि देव की मूर्ति दबी हुई मिली, फिर उन्होंने वहां पर पूजा की और घर लौट गए. दो-तीन दिन बाद उन्हें दोबारा स्वप्न आया तो फिर उस स्थान पर गए और पूजा पाठ करके अपने कार्यालय चले गए. इसके बाद बाद में वहां पर एक मंदिर बनाने का फैसला लिया गया. शनि देव की मुख्य मूर्ति चांदी से ढकी हुई है और केवल चेहरा दिखाई देता है. मुख्य गर्भ गृह में योगिनी और गणेश्वर कुबेर की मूर्तियां भी पाई जाती है.
इस मंदिर से जुड़ी पांच प्रमुख बातें
1. प्रत्येक शनिवार को यहां भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.
2. यह मंदिर उसी स्थान पर स्थित है जहां शनिदेव ध्यान में बैठे थे.
3. यहां पर भगवान शनि का मंदिर स्वयंभू है जो कि कुशफरा के जंगल में एक टीले पर मिली थी.
4. यहां की पहचान अखंड राम नाम जाप से भी है. इसके उपलक्ष्य में हर वर्ष यहां वार्षिक उत्सव को अन्नपूर्णा के भंडारे के रूप में मनाया जाता है.