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माता का अंतिम स्वरूप सिद्धि देने वाला है, छिंदवाड़ा में स्थित है 1200 वर्ष पुराना मंदिर

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माता का अंतिम स्वरूप सिद्धि देने वाला है, छिंदवाड़ा में स्थित है 1200 वर्ष पुराना मंदिर

देशभर में नवरात्रि का त्योहार बड़े ही भव्य तरीके से धूमधाम मनाया जा रहा है. नवरात्रि के हर दिन माता के अलग-अलग रूप की विशेष तौर से पूजा की जाती है. नवरात्रि के नौवे दिन माता के अंतिम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है जो भक्तों को सिद्धि प्रदान करती है और सभी कष्टों से मुक्ति दिलाती है. नवरात्रि के नौवे दिन हम जिस सिद्धिदात्री माता की पूजा करते हैं उनका एक मंदिर छिंदवाड़ा में स्थित है जो 1200 साल पुराना है. 9वें दिन यहां माता रानी की पूजा करने के लिए भक्तों की भीड़ लग जाती है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर माता के स्वरूप की उत्पत्ति की कहानी क्या है और इसका महत्व क्या है.

माता सिद्धिदात्री का परिचय मां दुर्गा की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है जो सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली है. कमल पर विराजमान चारभुजा वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में विराजित है. उनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्र, शंकर, गदा और कमल रहता है. सर पर ऊंचा सा मुकुट और चेहरे पर मंद मुस्कान ही मां सिद्धिदात्री की पहचान है. भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही आठ सिद्धियां को प्राप्त किया था. इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिना, प्राप्,ति प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल है. सिद्धिदात्री के कारण ही शिव जी का आधा शरीर देवी का बना. भगवान ब्रह्मा को सृष्टि की रचना की जिम्मेदारी सौंप गई थी. भगवान विष्णु जीविका की ऊर्जा बने और भगवान शिव को विनाश की ऊर्जा प्राप्त हुई. भगवान ब्रह्मा को शेष ब्रह्मांड बनाने के लिए कहा गया जिसके लिए उन्हें पुरुष और महिला की आवश्यकता थी. भगवान विष्णु ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने को कहा. भगवान शिव ब्रह्मा के कठोर तप से प्रसन्न हुए और उन्हें मैथुनी रचना बनाने का आदेश दिया . ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से मैथुनी सृष्टि का अर्थ समझने को कहा. तब भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर अवतार लिया और अपने शरीर के आधे हिस्से को स्त्री रूप में प्रकट किया. तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के स्त्री रूपी अंग से अनुरोध किया कि वह उनकी सृष्टि रचना में सहायता करें ताकि बनाई गई सृष्टि बढ़ती रहे. देवी ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर महिला का रूप धारण किया. भगवान ब्रह्मा शेष ब्रह्मांड के साथ-साथ जीवित प्राणियों को बनाने में सक्षम थे. यह मात्र मां सिद्धिदात्री थी जिन्होंने ब्रह्मांड के निर्माण में भगवान ब्रह्मा के मदद की और भगवान शिव को पूर्णता भी प्रदान की.

छिंदवाड़ा में स्थित माता सिद्धिदात्री के 1200 वर्ष पुराने मंदिर का परिचय
माता सिद्धिदात्री का यह मंदिर छिंदवाड़ा में कलेक्टर बंगला के पास गोरिया रोड पर स्थित है, जहां माता के अंतिम स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है. माता का मंदिर तो देश के कई स्थान पर है लेकिन मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में माता सिद्धिदात्री का 1200 साल पुराना मंदिर है जहां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. कहा जाता है कि देवी दया वाली स्वभाव की है. भक्त सच्चे मन से जो वरदान मांगते हैं देवी उन्हें देती है. यहां पर माता के अंतिम स्वरूप का दर्शन करने से एक अलग ही सुकून और शांति की प्राप्ति होती है जहां लोग यहां पर नारियल का प्रसाद जरूर चढ़ाते हैं. साथ ही साथ माता को फूल, चूड़ियां, लाल चुनरी और सिंगार की सामग्री अर्पित करते हैं.

माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां
नवरात्रि के नौवे दिन शास्त्रीय विधि विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि जिस प्रकार देवी की पूजा करने से शिवजी को आठ सिद्धियां की प्राप्ति हुई थी, इसी तरह इनकी उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधि बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है. माता की पूजा करने के दौरान कमल का फूल जरूर अर्पित करना चाहिए. इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वह लाल वस्त्र में लपेट कर दे, इससे आपको लाभ मिलता है.

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