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छत्तीसगढ़ क्यों रहा नक्सली समस्या का केंद्र –

किस्सा- कहानी

छत्तीसगढ़ क्यों रहा नक्सली समस्या का केंद्र –

आज नक्सली समस्या भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है. दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में घरेलू आतंकवादी संगठन में भारत का नाम भी आता है. आज नक्सली भारत की राजधानी नई दिल्ली से लेकर उत्तरी राज्यों के जंगल और पहाड़ी इलाकों में भी खूब सक्रिय है. नक्सली संगठन संवैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गए हैं और संसदीय चुनाव में भी भाग लेते हैं. नक्सलवाद की समस्या सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश ,छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार को झेलनी पड़ती है.

एक ऐसे समय आया जब नक्सलवादी आंदोलन की आग धीरे-धीरे कई हिस्सों में फैल गई जिसके बाद मजदूरों को प्रताड़ित करने वाले बड़े लोग निशाने पर आने लगे. कहा जाता है कि 70 के दशक में विद्रोह काफी तेज हो गया था और यह नक्सली हक न मिलने पर हथियार उठाने से डरता नहीं था. आज भी यह देखा जाता है कि नक्सली हर साल कई बार सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं. हजारों जानें ऐसे हमलों में जा चुकी है और साल दर साल ऐसे हमले होते रहते हैं. भले ही यह दावा करते हैं कि वह आदिवासियों, किसानों और गरीबों की लड़ाई लड़ रहे हैं पर जानकार मानते हैं कि स्थानीय लोगों के समर्थन के कारण ही इन्हे कामयाबी मिलती है.

एक रिपोर्ट के अनुसार यह माना जाता है कि भारत के कुल 600 से ज्यादा जिलों में से एक तिहाई नक्सलवादी समस्या से जूझ रहे हैं. साल 2011 से लेकर अगस्त 2020 तक की बात करें तो अभी तक छत्तीसगढ़ में 3722 नक्सली घटनाएं हुई हैं, जिसमें 736 आम लोगों की जान गई हैं. जिसमे 489 जवान शहीद हुए हैं. आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ हमेशा से ही नक्सलियों का गढ़ रहा है. छत्तीसगढ़ में बीजापुर, सुकमा, बस्तर, कांकेर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, राजनंदगांव और कुंडा गांव शामिल है जहां पर नक्सलियों का प्रभाव ज्यादा दिखा जाता है.

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