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ब्रिगेडियर उस्मान की देशभक्ति पर बौखलाया था पाकिस्तान जानिए नौशेरा के शेर की दास्तां

किस्सा- कहानी

ब्रिगेडियर उस्मान की देशभक्ति पर बौखलाया था पाकिस्तान जानिए नौशेरा के शेर की दास्तां

बर्थडे स्पेशल: वो कहते हैं ना कि जिसके अंदर देशभक्ति का जज्बा होता है उसके आगे दुनिया की बड़ी से बड़ी चीजें भी छोटी लगने लगती है. ब्रिगेडियर उस्मान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने अपने देश के प्रति अपनी वफादारी कुछ इस तरह से दिखाई कि पाकिस्तान बौखला गया. 1947 में आजाद होने के बाद जब भारत- पाकिस्तान का विभाजन हुआ उस समय उन्हें भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया गया लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला लिया. आज हम नौशेरा के उस शेर की बात करने जा रहे हैं जिसने अपने देश के लिए बलिदान दे दिया लेकिन कभी पाकिस्तान का ऑफर नहीं स्वीकार किया. आज भारत अपने वीर सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्मदिन मना रहा है.

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का परिचय
ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था. उनके पिता काजी मोहम्मद फारुख एक पुलिस अधिकारी थे. वाराणसी के हरिश्चंद्र भाई स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद मोहम्मद उस्मान ने ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल होने का मन बनाया. भारतीयों के लिए कमीशन अधिकारी बनने की सीमित अवसर उपलब्ध होने के बावजूद वह प्रतिष्ठित रॉयल मिलिट्री एकेडमी के लिए जगह बनाने वाले कुछ दुर्लभ भारतीयों में से एक बन गए. 22 साल की छोटी सी उम्र में वह भारतीय सेना के लिए एनाटाचंड लिस्ट के लिए दूसरे लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किए गए थे. एक प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति होने के साथ-साथ वह सादा जीवन उच्च विचार पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने पूरे जीवन शादी नहीं की और अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा बेघरों और अनाथों के कल्याण के लिए दान कर दिया. मोहम्मद उस्मान को कई दफा मुसलमान होने की दुहाई देकर पाकिस्तान चुनने का दबाव भी बनाया गया था, पर वह अपनी सिद्धांतों को मानने वाले व्यक्ति थे, जिन्होंने कभी उसके साथ समझौता नहीं किया. उन्होंने हर बार यह कहा कि भले ही उनका मजहब जो भी हो पर उनका देश हिंदुस्तान है. तब जिन्ना ने उनके सामने एक ऐसा प्रस्ताव रखा, जिसे ठुकरा पाना मुश्किल होता. उस्मान को पाकिस्तानी सेना का अध्यक्ष बनने का ऑफर दिया गया था, पर इस ऑफर को भी उन्होंने ठुकरा दिया था. वह अकेले ऐसे भारतीय सैनिक थे जिनके सिर पर पाकिस्तान ने ₹50000 का इनाम रखा था जो 1947 के वक्त में एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. आजादी के बाद से ही पाकिस्तान की नजर कश्मीर को हड़पने पर थी और इसी चलते उन्होंने यह रणनीति अपनाई. कहा जाता है कि अगर समय से पहले ब्रिगेडियर उस्मान शहीद नहीं होते तो वह भारत के पहले मुस्लिम थलसेना प्रमुख होते.

मोहम्मद उस्मान को क्यों कहा जाता है नौशेरा का शेर
1948 में नौशेरा की लड़ाई के बाद उन्हें नौशेरा का शेर कहा जाने लगा था. द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान उस 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे जिसने नौशेरा में जीत हासिल की थी. 6 फरवरी 1948 को पाकिस्तान के नौशेरा पर अचानक बहुत बड़ा हमला कर दिया गया था जिसमें ब्रिगेडियर उस्मान ने भारतीय सेना का नेतृत्व एक बेहतरीन तरीके से किया और भारतीय सेना ने इस युद्ध में जीत हासिल कर ली, तभी से उन्हें नौशेरा का शेर कहा जाने लगा. अपनी छोटी सी उम्र में ब्रिगेडियर उस्मान ने जो हासिल किया था उसे हासिल करने के लिए कई लोगों को जन्मो जन्म तक का समय लग जाता है. 3 जुलाई 1948 को भारत- पाकिस्तान के बीच हुए पहले युद्ध के दौरान वह शहीद हो गए थे. भारत माता ने अपना एक वीर सपूत को दिया.

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