आज के समय में नौकरी की कीमत क्या है, यह हर किसी को पता है कि आज के समय में नौकरी मिलना कितनी बड़ी बात है और आप अगर दो या तीन दशक पहले जाते हैं तो नौकरी होना एक बहुत बड़े शान की बात हुआ करती थी. ऐसे समय में अगर कोई इंसान नौकरी छोड़कर फिल्मों में आना चाहे तो उसके लिए एक बहुत बड़े घाटे का सौदा साबित होता है, क्योंकि नौकरी भी गई और फिल्म भी नहीं मिली तो करियर पूरी तरह से बर्बाद. आज हम बॉलीवुड के एक महान कलाकार की बात करने जा रहे हैं जहां कई दशक बाद भी उनके डायलॉग लोगों के कान में गूंजते हैं और इसी के चलते उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी, जहां फिल्मों में इस कदर वह सफल हुए कि कभी जीवन में दोबारा मुड़ कर पीछे देखना नहीं पड़ा. आज हम सुपरस्टार राजकुमार की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्हें डायलॉग का बादशाह भी कहा जाता है.
सुपरस्टार राजकुमार के बॉलीवुड में आने की कहानी मुंबई आने के बाद उन्हें यहां पर सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिली. वह मुंबई के जिस थाने में काम करते थे वहां अक्सर फिल्मों से जुड़े लोग का आना- जाना लगा रहता था. एक बार उनके पुलिस स्टेशन में फिल्म निर्माता बलदेव दुबे कुछ जरूरी काम के लिए आए हुए थे, जो राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और वहीं पर उन्हें फिल्म का ऑफर मिल गया और राजकुमार ने बिना कुछ देर किए इस मौके को लपक लिया और अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर फिल्मों में चले गए. ‘रंगीली’ के तौर पर उन्हें पहली फिल्म ऑफर हुई थी. इसके बाद आबशार, घमंड, लाखों में एक, नौशेरवां ए आदिल उनकी लोकप्रिय फिल्मों में शामिल है. राजकुमार की चर्चा फिल्म ‘मदर इंडिया’ के लिए हुआ करती थी, जहां उन्होंने अभिनेत्री नरगिस के पति श्यामू का किरदार निभाया था. इसके बाद उन्होंने हमराज़ और नीलकमल जैसी फिल्मों में भी बेहतर अभिनय किया. दिलीप कुमार के साथ सौदागर फिल्म में उन्हें देखा गया जिसमें उनके अभिनय की खूब तारीफ हुई थी और बाद में परिस्थितियां ऐसी हुई कि राजकुमार ने बॉलीवुड में अपना पैर इस कदर जमा लिया कि बड़े-बड़े कलाकार भी इनके साथ काम करने से कतराते थे.
क्यों कहा जाता है इन्हें डायलॉग डिलीवरी का शहंशाह राजकुमार का नाम लेते ही उनके डायलॉग लोगों के दिमाग में चलने लगते हैं. यही वजह है कि उनकी गिनती अपने समय में सुपरस्टार में की जाती थी जिनकी एक्टिंग, स्टाइल के साथ-साथ डायलॉग डिलीवरी भी बेहतरीन थी. स्क्रीन पर ही नहीं रियल लाइफ में भी बड़े बेबाकी से वह सारी चीजों को पेश करते थे. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि यदि उन्हें फिल्म के डायलॉग पसंद नहीं आते थे तो ऑन कैमरा ही, उसे बदल देते थे. साल 1991 में आई फिल्म ‘सौदागर’ में उनका एक फेमस डायलॉग था कि जब राजेश्वर दोस्ती निभाता है तो अफ़साने लिखे जाते हैं और जब दुश्मनी पर आता है तो तारीख बन जाती है. वही 1965 में आई फिल्म ‘वक्त’ का एक बेहतरीन डायलॉग राजकुमार द्वारा कहा गया कि चिनॉय सेठ जिनके अपने घर शीशे के हो वह दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते.