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दंड प्रक्रिया संहिता ‘सीआरपीसी’ न्यायपालिका को देता है समाज को भय मुक्त बनाने का अधिकार

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दंड प्रक्रिया संहिता ‘सीआरपीसी’ न्यायपालिका को देता है समाज को भय मुक्त बनाने का अधिकार

सीआरपीसी का मतलब होता है कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर यानी कि दंड प्रक्रिया संहिता 1974 के अधिनियम नंबर 2 के तहत इसका अवतरण हुआ था. सीआरपीसी अधिनियम पूरे भारत में  लागू है. आइए जानते हैं सीआरपीसी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां.

1 अप्रैल 1974 को सीआरपीसी पूरे भारत में लागू हो गया था. सीआरपीसी की कुल 484 धाराएं हैं. हमारा पहला सीआरपीसी 1961 में बना था और उसमें लगातार अमेंडमेंट होते रहे और अभी नई सीआरपीसी ने जगह ले ली है.

सीआरपीसी को पहले दो भागों में बांटा गया है. मौलिक विधि और प्रक्रिया विधि और फिर इसे भी दो भागों में बांटा जाता है सिविल लॉ क्रिमिनल लॉ……
इस हिसाब से आईपीसी मौलिक विधि है और सीआरपीसी प्रक्रिया विधि है। इसमें काम करने की पूरी प्रक्रिया को बताया जाता है कि काम किस प्रकार होगा, क्राइम का इन्वेस्टिगेशन किस प्रकार होगा और दोषियों को कौन सी सजा कैसे मिलेगी, यह सारी बातें शामिल है.

आजादी से पहले के समय ईस्ट इंडिया कंपनी के पास अपना कोर्ट नहीं था. हर शासक का अपना न्याय प्रणाली था, पर 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश क्रॉउन ने भारत का एडमिन्सट्रेशन कंपनी के हाथों से हटाकर अपने हाथों में ले लिया और ब्रिटिश पार्लियामेंट ने पूरे भारत के लिए एक यूनिफॉर्म क्रिमिनल प्रोसीजर स्थापित करके 1861 में क्रिमिनल प्रोसीजर को पास किया गया. इसके बाद स्वतंत्र भारत की पहली लॉ कमीशन साल 1955 में सेटअप की गई थी, जिसके चेयरमैन एमसी सेतलवाद थे. इस कमीशन में सीआरपीसी को अच्छी सी स्टडी किया गया और 1969 को अपनी रिपोर्ट में बहुत सारे रिकमेंडेशन दिए गए और इन सुझाव को क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 में काँपरेट किया गया और 1974 को यह लागू हुआ.

इसे बनाते वक्त 3 सिद्धांतों को ध्यान में रखा गया था, जिसके तहत यह बताया गया था कि हर एक व्यक्ति को एक नेचुरल जस्टिस के हिसाब से फेयर ट्राईल का मौका मिलना चाहिए.दूसरा इन्वेस्टिगेशन और ट्रायल के बीच में अनावश्यक डीले नही करना चाहिए.

सीआरपीसी के कई कानूनों में सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर संशोधन किए हैं जो समाज हित में लागू होते हैं.

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