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लंबे अरसे से भारत को तलाश है अपने तीसरे राष्ट्रकवि की, यूं ही नहीं मिलता यह सम्मान

ओ तेरी..

लंबे अरसे से भारत को तलाश है अपने तीसरे राष्ट्रकवि की, यूं ही नहीं मिलता यह सम्मान

ऐसा कवी जिसकी कलम में इतनी ताकत हो कि वह लोगों के अंदर राष्ट्रीय प्रेम की भावना को मजबूत कर सके और समाज में फैले हुए कुरीतियों को बदल सके, ऐसे महान कवियों को हमारे देश में राष्ट्रकवि की पदवी दी जाती है. आज हम भारत के जिन दो महान राष्ट्र कवियों की बात करने जा रहे हैं, उनके अंदर इस तरह की खूबियां कूट-कूट कर भरी थी, जिन्होंने आजादी से पहले ही समाज में हो रही घटनाओं और लोगों की मानसिकता को समझ कर अपनी कलम से ऐसा जादू दिखाया जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी. यही वजह है कि इन कवियों ने ना केवल खूबसूरत और लोकप्रिय काव्य का निर्माण किया बल्कि एक नए समाज के निर्माण में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है, तभी तो इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी जाती है, जो पिछले कई दशक से शायद किसी और को नहीं मिल पाई है.

मैथिलीशरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर का परिचय
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 1886 ईसवी में उत्तर प्रदेश में हुआ था. पिता को हिंदी साहित्य से काफी प्रेम था और उनके पिता का ही मैथिलीशरण गुप्त पर प्रभाव पड़ा. गुप्तजी ने सबसे पहले भारत भारती नाम की एक काव्य ग्रंथ की रचना की जिसके बाद तो युवाओं में देश प्रेम की भावना जाग उठी. उन्होंने अपने लेख के माध्यम से समाज सुधार, देश प्रेम, धर्म, राजनीति, भक्ति आदि सभी विषयों पर बहुत बारीकी से काम किया, जिसका प्रभाव भी नजर आया और पूरे देश में एक अलग ही हवा चलने लगी. भारत सरकार ने 1954 में उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से भी नवाजा था. सरस्वती, रंग में भंग, भारत भारती, साकेत, पंचवटी, यशोधरा जैसी महान रचनाएं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रची गई.
भारत के एक अन्य राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय में हुआ. वह बचपन से ही गांव में रहा करते थे जहां आस-पास केवल प्रकृति की सुंदरता और बाग बगीचे नजर आते थे. इतना ही नहीं 2 वर्ष की आयु में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी जहां उनकी विधवा मां ने उनके भाई- बहनों का पालन पोषण किया था. यही वजह है कि उनके वास्तविक जीवन की कठोरता का भी उनके दिमाग पर काफी असर पड़ा. एक छात्र के रूप में उन्होंने इतिहास, राजनीति और दर्शन विषय को खूब पसंद किया. 1924 में छात्र सहोदर नाम की पहली कविता उनकी प्रकाशित हुई. इसके बाद रेणुका, उर्वशी, कृष्णा की चेतावनी, हुंकार, रश्मिरथी जैसी अपनी रचनाओं से उन्होंने हर किसी को प्रभावित किया.उन्हे 1959 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया. इन दोनों राष्ट्र कवियों के बाद आज पिछले कई दशक से भारत को लंबे समय से एक तीसरे राष्ट्र कवि की खोज है जो इसी तरह पूरे देश में अपने कविता और लेख पर लोगों की धारणा बदलने की काबिलियत रखें और निष्पक्ष होकर जिस तरह इन दोनों कवियों ने लोगों के दिल और दिमाग तक अपनी पहचान बनाई वैसा कुछ करें.

गुप्त और दिनकर की खास बातें जो उन्हें अन्य कवियों से अलग बनाती हैं
1. इन दोनों कवियों की रचनाओं में भारत का मूल संस्कार छिपा हुआ है जो इन्हें अन्य कवियों से अलग बनाता है.
2. 12 वर्ष की उम्र में जहां ढंग से हिंदी लिखने और बोलने का कौशल नहीं होता है, उस उम्र में मैथिलीशरण गुप्त ने ब्रज भाषा में कविता लिखना शुरु कर दिया था.

3. रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं पढ़कर ऐसा लगता है कि यह एक व्यक्ति को व्यक्तिवाद से आशावाद की ओर ले जाती है.

लोगों के बीच कविता पाठ करते राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर.
लोगों के बीच प्रस्तुति देते राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त.

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