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जज साहब मौका मिला तो आपको भी बम बनाना सिखाऊंगा, खुदीराम ने ब्रिटिश हुकूमत की गुरुर पर फेंका था बम

किस्सा- कहानी

जज साहब मौका मिला तो आपको भी बम बनाना सिखाऊंगा, खुदीराम ने ब्रिटिश हुकूमत की गुरुर पर फेंका था बम

हमारे देश को आजाद करवाने में सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपने प्राण निछावर कर दिए. हमारे देश में आपको ऐसे ऐसे देशभक्ति के उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जहां किशोरावस्था में ही क्रांतिकारी फांसी पर चढ़ गए. आज हम आपको ऐसे ही एक क्रांतिकारी की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो 18 साल की उम्र में फांसी के फंदे के पास खड़े थे फिर भी उनकी आंखों में खौफ न था. आज 11 अगस्त को पूरा भारत उनका बलिदान दिवस मना रहा है. वह इतने बहादुर थे कि उन्होंने अदालत में सजा सुनाने से पहले जज से यह तक कह दिया कि जज साहब अगर मुझे मौका मिला तो मैं आपको भी बम बनाना सिखा दूंगा. आज हम आपको बताएंगे कि देश को आजाद कराने के लिए फांसी के फंदे पर लटकने वाले खुदीराम बोस का आजादी की लड़ाई में क्या योगदान था और उन्होंने अपने जीवन काल के दौरान क्या-क्या कारनामे किए थे.

अमर शहीद खुदीराम बोस का जीवन परिचय
3 दिसंबर 1889 को खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर के हबीबपुर गांव में हुआ था. कम उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था जिसके बाद उनकी बड़ी बहन ने उनका पालन पोषण किया. उनके अंदर देश को आजाद करने का ऐसा जुनून था कि उन्होंने नौवीं कक्षा में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में पूरे दिलो जान से कूद पड़े और सत्येंद्र नाथ बोस के नेतृत्व में वह रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए. जहां उन्होंने कई क्रांतिकारी अभियानों में हिस्सा लिया और बम बनाना सीखे. उस वक्त किंग्सफोर्ड चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट को बहुत ही सख्त और निर्दई अधिकारी माना जाता था जिस वजह से खुदीराम ने यह घोषणा की थी कि मुजफ्फरपुर में ही किंग्सफोर्ड को मारा जाएगा. वह मुजफ्फरपुर पहुंचकर धर्मशाला में 8 दिन रहे थे और जज की गतिविधियों पर पूरी तरह नजर रखी. रात के 8:30 बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्गी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रहे थे. उनकी बग्गी का रंग लाल था और वह बिल्कुल किंग्सफोर्ड की बग्गी से मिलती जुलती थी. खुदीराम बोस और उनके साथी यहीं पर धोखा खा गए और उन पर बम फेंक दिया, उसमें सवार मां बेटी की मौत हो गई. वे दोनों यह सोच कर भाग निकले कि किंगफर्ड मारा गया, पर ऐसा हुआ नहीं. थोड़ी देर भागने के बाद पुलिस ने उन्हें घेर लिया. ऐसा होता देख प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मार ली और खुदीराम बोस पकड़े गए, जिन्होंने इस जुर्म को स्वीकार किया. जब अदालत में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.18 साल 8 महीने और 8 दिन की उम्र में 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई थी. इसके बाद कई दिनों तक स्कूल कॉलेज बंद रहे थे.

खुदीराम बोस के जीवन की कुछ खास बातें
1. 6 दिसंबर 1960 को उन्होंने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया.
2. खुदीराम बोस देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी देशभक्त कहे जाते हैं.
3. मात्र 15 साल की उम्र में पहली बार ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पर्चे बांटने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया था.

बिहार के मुजफ्फरपुर में स्थित है शहीद खुदीराम बोस एवं प्रफुल्ल चाकी स्मारक स्थल.

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