एक ऐसा मिशन जिसने दुनिया के बड़े से बड़े देश को सोचने के लिए विवश कर दिया था. यह दुनिया का पहला ऐसा मंगल अभियान था जो अपने पहले ही प्रयास में सफल रहा था. मात्र 450 करोड रुपए की लागत से मिशन मंगल ने तय कर लिया था 78 करोड़ किलोमीटर का सफर.अपने पहले प्रयास में मंगलयान मंगल की कक्षा में पहुंचने में सफल रहा. दरअसल मंगलयान का ईंधन खत्म हो गया था और बैटरी भी बंद हो चुकी थी जिससे उसका फिर से चालू होना मुश्किल था और मंगलयान से संपर्क भी पूरी तरह टूट चुका था. इसके बावजूद भी इस अभियान ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में बहुत बड़ी सफलता पहुंचाई. इसरो को इस बड़ी सफलता के लिए कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड दिए गए. भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन ने मिशन मंगल को प्राइड ऑफ एशिया के नाम से पुकारा था.
भारत के मंगल मिशन की मूलभूत जानकारी 5 नवंबर 2013 में मंगलयान को पीएसएलवी रॉकेट से रवाना किया गया था, जिसकी पूरी लागत 450 करोड़ रुपए थी. मंगलयान ने साढे़ 7 साल तक संचालन करते हुए मंगल ग्रह की परिदृश्य का अवलोकन किया और अपने पांच विज्ञान उपकरणों का उपयोग करके उनकी संरचना का अध्ययन किया. इसरो के मंगलयान ने मंगल ग्रह की कक्षा में अपने लगभग 8 साल पूरे किए हैं और मंगलयान को केवल 6 महीने के लिए डिजाइन किया गया था लेकिन यह 8 साल तक काम करता रहा. इस मंगलयान के पीछे वैज्ञानिक उद्देश्य था कि मंगल ग्रह की सतह की आकृति, खनिज का अध्ययन तथा वायुमंडल और हवा के बारे में सारी जानकारी और मंगल ग्रह का माहौल के घटक सहित मिथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का अध्ययन करे.
इसरो के वैज्ञानिक जो इस मिशन को लीड कर रहे थे, उनकी जानकारी
1. रितु करीधल जो बचपन से ही आसमान की ओर काफी आकर्षित थी. वह 18 साल से इसरो में काम कर रही हैं. 18 महीने तक उन्होंने मिशन मंगल के लिए काफी मेहनत की.
2. नंदिनी हरीनाथ- ये इस मिशन की डेप्युटी डायरेक्टर है. इस नौकरी को करते हुए उन्हें 20 साल हो गए और उन्हें साइंस फिक्शन का शौक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक बनने की भी ललक थी, जिस कारण वह यहां तक पहुंचे.
3. अनुराधा टीके- वह अंतरिक्ष में कम्युनिकेशन सेटेलाइट भेजने में एक्सपर्ट है, जो भारत से 36000 किलोमीटर दूर रहते हैं. 34 साल तक उन्होंने इसरो में अपनी सुविधा दी.
मंगल मिशन से मिली उम्मीद से अधिक सफलता इस मिशन को सिर्फ 6 महीनों के लिए लांच किया हो और वह लगभग 8 वर्षों तक चला इससे अधिक सफलता क्या होगी.मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के बाद लगभग 8 साल बाद भारत के ऐतिहासिक मार्स आर्बिटर मिशन यानी कि मंगलयान की बैटरी और इंधन खत्म हो गई थी, जिस कारण मंगलयान से संपर्क टूट गया था. इसरो मंगलयान की कक्षा में सुधार के जरिए उसकी बैटरी की जिंदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा था यह इसलिए जरूरी था क्योंकि लंबे ग्रहण के दौरान ही मंगलयान को ऊर्जा मिलती रहे लेकिन हाल में कई ग्रहण के बाद कक्षा में सुधार नहीं हो पाया, जिसके कारण यह समाप्त हो गया. बैटरी को केवल 1 घंटे और 40 मिनट की ग्रहण अवधि के हिसाब से डिजाइन किया गया था। इस कारण लंबा ग्रहण लग जाने से बैटरी लगभग समाप्त हो गई।