बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का चलन तो काफी लंबे समय से चलता रहा है. स्कूल से तुरंत आने के बाद बच्चे ट्यूशन भाग जाते हैं और कुछ की ट्यूशन तो इतने लंबे होते हैं कि उन्हें स्कूल से ही जाना पड़ता है. इसके लिए उन्हें वक्त भी नहीं मिलता है. यह साफ तौर पर नजर आता है कि किस तरह बच्चों के दिमाग पर ट्यूशन का शुरू से प्रेशर बनाया जाता है जिसकी पूर्ति उन्हें हर हाल में करनी पड़ती है. लगभग 6 घंटे स्कूल की पढ़ाई करने के बाद भी सेल्फ स्टडी करने के बजाय आज के बच्चों के ऊपर ट्यूशन पढ़ने का प्रेशर है. बच्चों को यह समझाया जाता है कि स्कूल के जो भी डाउट होंगे या किसी प्रकार की कोई भी समस्या होगी तो वह ट्यूशन में हल होगी लेकिन ट्यूशन वाले एक अलग ही जोन में चले जाते हैं और वह बच्चों को अलग होमवर्क देने लगते हैं, जिस कारण बच्चों की पढ़ाई दो शिफ्ट में बट जाती है. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह स्कूल में लाखों की फीस देने के बावजूद भी बच्चे ट्यूशन पढ़ने को मजबूर हैं और आखिर किस प्रकार उन पर सेल्फ स्टडी की वजह ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाया जाता है.
आजकल की पढ़ाई में ट्यूशन सिस्टम का चलन आज के समय में कई ऐसे अच्छे-अच्छे स्कूल खुल गए हैं, जहां पर शारीरिक और मानसिक गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को खूब पढ़ाया जाता है. इन स्कूल की फीस लाखों में होती है. इसके बाद माता-पिता को आस्वस्थ हो जाना चाहिए कि उनका बच्चा एक अच्छी जगह पर है, पर ऐसा होता नहीं है. बड़े से बड़े स्कूल में पढ़ने के बावजूद भी आज के समय में ट्यूशन के चलन से हर कोई परेशान है. लेकिन पेरेंट्स कभी भी स्कूल वालों से यह नहीं पूछते कि जब आप 6 घंटों में बच्चों को सही शिक्षा नहीं दे सकते तो 1 या 2 घंटे के ट्यूशन का क्या मतलब है. ट्यूशन पढ़ाई के खाना-पूर्ति का एक जरिया बन गया है. भले ही आप किसी के घर या किसी के इंस्टिट्यूट जाकर ट्यूशन पढे़ या फिर आप होम ट्यूशन ले, बात बराबर है. इतना ही नहीं आज के समय में तो स्कूल के शिक्षकों ने भी एक बहुत बड़ा बिजनेस खोल लिया है, जो बच्चों को अपने पास ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाते हैं. इतना ही नहीं बच्चों को मार्क्स बढ़ाने और उन्हें अलग तरह से ट्रीट करने का भी लालच दिया जाता है, जिस कारण बच्चे इस बात में आ जाते हैं. यही वजह है कि अब धीरे-धीरे सेल्फ स्टडी का चलन खत्म हो चुका है और पूरी तरह बच्चों को ट्यूशन पर निर्भर बना दिया गया है.
ट्यूशन से बच्चों पर पड़ने वाला मुख्य असर और कुछ सुझाव 1. सुबह से ही बच्चों के रूटीन में यह सेट होता है कि उन्हें आकर स्कूल से ट्यूशन जाना है जिसका उनके दिमाग पर दबाव रहता है.
2. Self-study के बजाय यह एक तरह से समय की बर्बादी है जिसे कई बच्चे केवल खाना-पूर्ति के रूप में करते हैं.
3. बचपन से ही ट्यूशन पर आश्रित होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि जब किसी कक्षा में आपको अच्छा ट्यूशन टीचर नहीं मिलता तो इसका असर आपके पढ़ाई पर पड़ता है और अगर गलती से बोर्ड्स में आपको अच्छे ट्यूशन टीचर नहीं मिले तो यह आपके करियर में एक काला दाग छोड़ सकता है.
4. चौथी और पांचवी कक्षा से ही बच्चों को self-study की आदत डालनी चाहिए और उन्हें जो डाउट्स आते हैं वह अपने क्लास रूम में पूछ कर सॉल्व करें.