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हजारों टन वजन लेकर आकाश में उड़ जाता है हवाई जहाज, इस रिपोर्ट में पढ़िए विज्ञान का यह चमत्कार

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हजारों टन वजन लेकर आकाश में उड़ जाता है हवाई जहाज, इस रिपोर्ट में पढ़िए विज्ञान का यह चमत्कार

हम जमीन से जब आकाश में हवाई जहाज को बचपन में देखते थे तो शायद यह कल्पना ही नहीं कर पाते होंगे कि वह अंदर से कितना बड़ा है और उसने कितने लोगों और कितने वजन को अपने साथ समेटा हुआ है, पर जैसे-जैसे बड़े होते गए हमें इसके बारे में पता चल पाया कि किस तरह एक जहाज में हजारों टन का वजन होता है. यह सवाल तो हर किसी के दिमाग में आया होगा की आंखिर यह हवाई जहाज आकाश में उड़ता कैसे है और इसके पीछे वजह क्या है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर किस तरह यह चमत्कार सफल हुआ और आज हजारों टन का वजन अपने साथ लिए हवाई जहाज कैसे आकाश में उड़ता है.

हवाई जहाज के विकास की कहानी
एरोप्लेन के आविष्कार का श्रेय राइट बांधुओं को जाता है. दरअसल ऑरविल राइट और विलबर राइट ने इसकी शुरूआत की. इन्होंने 1903 में एक ऐसा हवाई जहाज बनाया जो पूरी तरह से अनियंत्रित था. दोनों को मशीनी तकनीक की काफी अच्छी समझ थी, जो उन्हें प्रिंटिंग प्रेस, साइकिल मोटर और दूसरी मशीनों पर लगातार काम करते हुए हासिल हुआ था.  इसके साथ उन्होंने हवाई जहाज के उड़ने के लिए फ्लूड डायनामिक के सिद्धांतों का भी उपयोग किया. राइट बंधुओ ने एरोप्लेन का वजन बार-बार कम किया जिससे इसे हवा में उड़ने में आसानी हो सके. इसकी दिशा सही और संतुलित करने के लिए 3 एक्सेस कंट्रोल थ्यूरी का भी उपयोग किया गया. अंत में उनकी मेहनत रंग लाई और 17 दिसंबर 1903 को उनका बनाया राइट फ्लायर नामक हवाई जहाज उडा़ जिसकी ऊंचाई 120 फीट थी और यह 12 सेकंड तक उड़ा था.

हवाई जहाज के उड़ने के पीछे क्या है विज्ञान का चमत्कार
हवाई जहाज की बनावट इस तरह की होती है कि इसके विंग के ऊपर से लगातार हवा का भाव पैदा होता है जो हवा को नीचे ग्राउंड की तरफ धकेलता है और एक अपवर्ड फोर्स पैदा करता है. यही वजह है कि हजारों टन का वजन लिए भी हवाई जहाज हवा में बड़े ही आसानी से उड़ता है. अगर आप हवाई जहाज को देखेंगे तो आपको इंजन नजर आता है. इससे पहले भी हवाई जहाज में एक फैन दिखता है जो टाइटेनियम का बना होता है. यह बेहद ही ज्यादा शक्तिशाली होता है. इस पंखे से लाखों किलो हवा को खींचकर इंजन में भेजा जा सकता है. इसके बाद कंप्रेसर चलने पर उसके ब्लेड छोटे होते चले जाते हैं और हवा को कंप्रेस कर देते हैं. कंप्रेसर से होकर गर्म हवा को अब टरबाइन से गुजरनी होती है जिसकी रफ्तार बेहद ही तेज होती है. इस टरबाइन से ही फैन और कंप्रेसर भी जुड़े होते हैं और तेजी से हवा खींचने लगते हैं. कंप्रेस्ड हवा को तेजी से बाहर निकाल दिया जाता है. जैसे ही हवा नौज से बाहर निकलती है, न्यूटन का तीसरा लाँ यहां पर लागू हो जाता है, जिसकी मदद से प्लेन को आगे की तरफ धक्का मिलता है. हवाई जहाज को बनाने के लिए एक अलग ही तरह की तकनीक अपनाई गई है. दरअसल गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में तो आपने सुना ही होगा जो किसी भी फोर्स को नीचे की तरफ खींचता है. उड़ते हुए हवाई जहाज के साथ भी ऐसा ही होता है. प्लेन के विंग ऐसे बनाए जाते हैं कि उन पर लिफ्ट फोर्स लग सके. प्लेन के पंख तिरछे बनते हैं ताकि जब थ्रस्ट प्लेन को आगे की तरफ धकेले तो विंग के ऊपर की हवा तेजी से गुजरे और विंग के नीचे की हवा धीरे-धीरे निकले इसलिए प्लेन हवा में उड़ पाता है और जैसे ही यह एक बार हवा में उड़ने लगता है, इसके बाद सारे बल समान हो जाते हैं.

यह हवाई जहाज का इंजन है, जो हवाई जहाज को ऊपर उठने के लिए बल पैदा करता है.

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