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चंदन की लकड़ी के उत्पादन में भारत को इस देश ने पीछे छोड़ दिया, इस वजह से होती है तस्करी

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चंदन की लकड़ी के उत्पादन में भारत को इस देश ने पीछे छोड़ दिया, इस वजह से होती है तस्करी

चंदन की लकड़ी तो हर किसी ने देखी होगी, जिसका इस्तेमाल पूजा पाठ के साथ-साथ सौंदर्य के लिए भी किया जाता है. हमारा भारत चंदन की लकड़ी के उत्पादन में एक समय में पूरी दुनिया पर राज करता था, लेकिन यहां पर कुछ लोगों ने तस्करी का जाल बिछाकर भारत को पूरी तरह से कलंकित कर दिया है. यही वजह है कि अब भारत को पीछे छोड़कर एक दूसरे देश ने बाजी मार ली है और चंदन की लकड़ी के उत्पादन में नंबर वन देश बन चुका है. हमारे देश में जिस तरह चंदन की खेती पर सरकार का सख्त नियंत्रण और उदासीनता है, वह जग जाहिर है. आज हम आपको बताएंगे कि किस प्रकार सबसे ज्यादा उत्पादन होने के बावजूद भी भारत इस वक्त चंदन के उत्पादन में पीछे चल रहा है और किसी और देश ने बाजी मार ली है. किन कारणों की वजह से भारत को इन कमियों का सामना करना पड़ रहा है.

चंदन की लकड़ी का परिचय और उसके महंगे होने की वजह : चंदन की लकड़ी अन्य पेड़ों की तुलना में अधिक गुणवत्ता वाली होती है, जो बेहद ही मजबूत और कीमती होती है. इसका उपयोग घर की सजावट के लिए भी आप कर सकते हैं. हिंदू धर्म से लेकर आयुर्वेद में चंदन को बहुत ही पवित्र माना गया है. चंदन का पेड़ छोटा सा होता है जिसकी 5 से 8 मीटर तक इसकी ऊंचाई होती है. चंदन का पेड़ लगभग 40 से 60 साल की उम्र के पश्चात बहुत अधिक सुगंधित वाला वृक्ष तैयार हो जाता है. आपने अकसर सुना होगा कि चंदन की कीमत काफी ज्यादा होती है. दरअसल चंदन का पौधा लगाना बहुत कठिन प्रक्रिया है और इसमें सालों समय लगता है. यही वजह है कि इसकी कीमत सोने के समान होती है. आपको बता दे कि यह दुनिया का सबसे महंगा पेड़ माना जाता है क्योंकि इसकी लकड़ी प्रति किलो 27000 के आसपास बिकती है. एक पेड़ से 15 से 20 किलो लकड़ी निकल जाती है जिसे बेचने पर 5 से 6 लख रुपए कमाए जा सकते हैं.

ऑस्ट्रेलिया और भारत में चंदन के लकड़ी के उत्पादन में कंपटीशन :भारत और ऑस्ट्रेलिया में जो चंदन उगाई जाती है उसे सबसे प्रतिष्ठित किस्म में से माना जाता है. अन्य सभी चंदन की तुलना में जो भारत में चंदन है उसे सबसे अनोखा माना जाता है जो 70 से 90% योगिक होते हैं. भारत में अगर चंदन राजा है तो वही ऑस्ट्रेलिया में चंदन राजकुमार है. ऑस्ट्रेलियाई चंदन में कुल सैंटालोल का 20 से 40% होता है. एक समय था जब भारत चंदन की लकड़ी के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक हुआ करता था लेकिन 21वीं सदी में सारा खेल बदल गया है. अब आस्ट्रेलिया ने भारत को इस मामले पर पीछे छोड़ दिया है. गिरावट के लिए आंशिक रूप से अत्यधिक शोषण इसके लिए जिम्मेदार है. विश्व बाजार में चंदन की लकड़ी की मांग लगभग 5000 से 6000 टन है. इस मांग में से दो तिहाई से अधिक भारतीय चंदन की लकड़ी की है. मांग और आपूर्ति में इस अंतर के कारण कीमतों में वृद्धि हुई है और इसके परिणाम स्वरुप बड़े पैमाने पर तस्करी हुई है. यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया बोनस भारत की ढलाई और चंदन की बढ़ती वैश्विक मांग का लाभ उठाते हुए भारत के बाहर विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया में वृक्षारोपण फल फूल रहा है. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार और इसकी स्थानीय अर्थव्यवस्था में भारत कि हिस्सेदारी खतरे में पड़ गई है.

भारत में बड़े पैमाने पर चंदन की खेती होती है परंतु तस्करों से इसकी रखवाली एक बड़ी चुनौती है.

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