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10 दिनों तक होती है गणेश चतुर्थी की पूजा, महाराष्ट्र में विशेष तरीके से यह त्यौहार मनाने की पीछे है खास वजह

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10 दिनों तक होती है गणेश चतुर्थी की पूजा, महाराष्ट्र में विशेष तरीके से यह त्यौहार मनाने की पीछे है खास वजह

गणेश चतुर्थी का त्योहार देश के हर कोने-कोने में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. लोग मंदिरों के साथ-साथ घर में भी गणेश जी की मूर्ति लाकर पूजा अर्चना करते हैं और 10 दिन के बाद विसर्जन कर देते हैं. इन 10 दिन गणपति बप्पा का मनपसंद भोग लगाया जाता है और पूरी श्रद्धा भाव से उनकी पूजा अर्चना की जाती है, पर क्या आपने कभी सोचा है कि गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र जैसे जगह पर इतनी धूमधाम से और बड़े-बड़े पंडालो में क्यों मनाया जाता है. पूरा मुंबई गणेश चतुर्थी आते ही एक अलग ही रंग में रंग जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि महाराष्ट्र में विशेष तरीके से क्यों गणेश चतुर्थी मनाया जाता है. इसके पीछे की वजह क्या है और आखिर 10 दिनों तक ही क्यों गणेश चतुर्थी मनाया जाता है.

गणेश चतुर्थी पर्व का परिचय
इस त्योहार के समय 9 दिन तक भगवान गणेश की पूजा करते हैं और दसवें दिन उनकी मूर्ति को विसर्जित कर देते हैं. भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है. हिंदू धर्म में किसी भी नए काम को प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. गणेश चतुर्थी का त्योहार आने से दो-तीन महीने पहले ही कारीगर भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियां बनाना शुरू कर देते हैं. प्रत्येक पंडाल में एक पुजारी होता है जो इस दौरान चार विधियों के साथ पूजा करते हैं. भगवान गणेश देवों के देव भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र हैं. स्कंद पुराण में एक कथा के अनुसार भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेश जी ने अर्बुद पर्वत पर जन्म लिया था. इसी वजह से माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है. गणपति के जन्म के बाद देवी देवताओं ने इस पर्वत की परिक्रमा की थी. इसके साथ ही साधु संतों ने गोबर से वहां भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित की थी. आज इस मंदिर को सिद्ध गणेश के नाम से जाना जाता है. वही वारह पुराण के अनुसार भगवान शिव ने गणेश जी को पांच तत्वों से बनाया है. यह भी कहा जाता है की माता पार्वती ने गणेश जी को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था.

10 दिनों तक क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी का पर्व : भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. वहीं दूसरी ओर 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाने के पीछे यह मान्यता है कि वेदव्यास जी ने गणेश भगवान से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की तो गणपति जी 10 दिनों तक बिना रुके महाभारत लिखते रहे. जब वेदव्यास जी ने देखा तो पाया कि गणेश जी का तापमान बहुत बढा़ हुआ है और दसवें दिन उन्हें नदी में स्नान करवाया तभी से गणेश चतुर्थी की शुरुआत मानी जाती है और अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है.
महाराष्ट्र में विशेष रूप से गणेश चतुर्थी मनाई जाने की जड़े भारत के इतिहास से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि 1630 से 1680 में शिवाजी ने इस त्योहार को सबसे पहले पुणे में मनाना शुरू किया था. 18वीं सदी में पेशवा भी गणेश भक्त थे तो उन्होंने भी सार्वजनिक रूप से भाद्रपद के महीने में गणेश उत्सव मनाना शुरू किया. जब ब्रिटिश शासन आया तब गणेश उत्सव के लिए जो भी पैसे मिलता था वह बंद हो गया. इसकी वजह से ये उत्सव कुछ समय के लिए रोकना पड़ा. हालांकि बाल गंगाधर तिलक ने इस महोत्सव को फिर से शुरू करने का फैसला लिया. उन्होंने सोचा कि इस त्योहार के जरिए भारतीयों को एक जगह इकट्ठा किया जा सकता है और उसके जरिए उनमें संस्कृति के प्रति सम्मान और राष्ट्रवाद की भावना बोई जा सकती है.

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