भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है, जहां देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़े ही धूमधाम से गणपति का स्वागत किया जाता है और उनकी पूजा अर्चना होती है. किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले गणपति का नाम लिया जाता है जिनकी पूजा पाठ करने के बाद ही किसी काम का श्री गणेश होता है. भारत में गणपति के कई ऐसे मंदिर है जो अपने अलग-अलग चमत्कारों की वजह से लोकप्रिय है. इसी में एक ऐसा गणेश मंदिर है जहां उनकी स्वयं मूर्ति प्रकट हुई थी. पुणे में स्थित मयूरेश्वर धाम की महिमा निराली है जहां पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि यहां पर किस प्रकार गणपति की मूर्ति उत्पन्न हुई और यहां पूजा करने का विशेष महत्व क्या है.
मयूरेश्वर गणपति मंदिर का परिचय यह महाराष्ट्र में पुणे के मोर गांव क्षेत्र में है. पुणे से करीब 80 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मिनारें और लंबे पत्थर की दीवार है. यहां चार द्वारा भी है जिन्हें सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग चारों युग का प्रतीक माना जाता है. इस मंदिर के चारों ओर चारमीनार और 50 फीट ऊंची दीवार है. यहां गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में है और उसकी सूड बाई ओर है तथा उसकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र है. यहा नंदी की भी मूर्ति है. दरअसल इस जगह को मयूरेश्वर कहने के पीछे एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि एक समय में यह स्थान मोरों से आबाद था. दरअसल एक समय पर यह क्षेत्र मोर के जैसा आकार लिए हुए था. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मोर पाए जाते थे, जिस वजह से यह मोर गांव के नाम से प्रसिद्ध हुआ. यहां पर गणेश चतुर्थी को विशेष रूप से पूजा की जाती है. अष्टविनायक भगवान गणपति के प्रसिद्ध आठ मंदिर है जो महाराष्ट्र में है. महाराष्ट्र के हर गांव में गणेश जी की एक या दो मंदिर पाए जाते हैं. पहले मोरेश्वर मंदिर मोर गांव पुणे जिले, सिद्धिविनायक मंदिर, बल्लालेश्वर मंदिर, वरद विनायक मंदिर, चिंतामणि मंदिर, गिरिजात्मज मंदिर, विग्नेश्वर मंदिर, महा गणपति मंदिर यह सभी महाराष्ट्र में स्थित है. मोर गांव मंदिर न केवल अष्टविनायक सर्किट में सबसे महत्वपूर्ण है बल्कि इसे भारत का सबसे प्रमुख गणेश तीर्थ कहा जाता है. यदि तीर्थ यात्रा के अंत में मोर गांव मंदिर के दर्शन नहीं होते हैं तो तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है.
इस मंदिर की कुछ रहस्यमई बातें 1. कहा जाता है इसी स्थान पर गणेश सिंह जी ने सिंधु रासुर नाम के रक्षा का वध मोड़ पर सवार होकर युद्ध करते हुए किया था.
2. यहां के लोगों का कहना है कि शुरू में मूर्ति की आकार छोटी थी परंतु दशकों से इस पर सिंदूर लगाने के कारण यह बड़ी होती जा रही है.
3. ऐसी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मंदिर को पवित्र किया है, जिस वजह से यह अविनाशी हो गई है.