आज पूरे भारतवर्ष में अनंत चतुर्दशी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है, जितने भव्य तरीके से गणपति बप्पा का स्वागत हुआ उतने ही शानदार तरीके से उनका विसर्जन होगा, जिसके लिए हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा होती है, जो गणपति बप्पा की विसर्जन में खूब नाचते हैं और उनकी विदाई करते हैं, पर यह दिन और भी ज्यादा खास है क्योंकि आज ही के दिन श्री हरि कहे जाने वाले भगवान विष्णु ने 14 लोको की रक्षा करने के लिए 14 रूप धारण किए थे. आज हम आपको बताएंगे कि इस दिन किस तरह से पूजा पाठ किया जाए. खास तौर पर इस दिन अनंत बांधने का खास महत्व है. उससे जुड़ी भी कई पौराणिक कथाएं शामिल है.
अनंत चतुर्दशी पर्व का परिचय हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का व्रत मनाया जाता है, जिसे अनंत चौदस के नाम से भी हम जानते हैं. इस बार अनंत चतुर्दशी की शुरुआत 27 सितंबर को 10:18 से हो रही है, जिसका समापन 28 सितंबर को 6:49 से होगा. इस दिन गणपति का विसर्जन किया जाता है. ये वही दिन है जब भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है. कहा जाता है जब दुर्योधन पांडव से मिलने गया तो माया महल का दृश्य देखकर धोखा खा गया. माया के कारण भूमि जल के समान प्रतीत होती थी और जल भूमि के समान. दुर्योधन ने भूमि को जल समझकर अपने वस्त्र ऊपर कर लिए परंतु जल को भूमि समझकर वह तालाब में गिर गया. इस पर द्रौपदी ने उपहास करते हुए कहा अंधे का पुत्र अंधा. इसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए दुर्योधन ने अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा और पांडवों को जुए में पराजित करके भरी सभा में द्रोपदी का अपमान किया. इसके बाद पांडव को 12 वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा. वन में रहते हुए पांडव ने अनेक कष्ट सहा. महाभारत काल से ही इस व्रत की शुरुआत हो गई थी. पांडव जब राज्यहीन हो गए थे तब भगवान श्री कृष्ण ने अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया था. श्री कृष्ण ने कहा था कि इस तिथि का व्रत करने से राज्य वापस मिल जाएगा और सभी संकट दूर हो जाएंगे. इस दिन विशेष तौर पर अनंत सूत्र बांधने का महत्व होता है. ऐसा करने से आपकी सौभाग्य में वृद्धि होती है और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के पश्चात बाजू पर जो अनंत सूत्र बांधा जाता है यह कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें 14 गांठ होती है. हर गांठ में श्री नारायण के विभिन्न नाम से पूजा की जाती है, जिससे व्यक्ति प्रत्येक कष्ट से दूर रहता है.
गणेश चतुर्दशी के दिन गणपति का विसर्जन क्यों होता है : इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है और बताया जाता है कि जब महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी को महाभारत लिखने से मना लिया तो बप्पा ने शर्त रखी कि मैं जब लिखना शुरू करूंगा तो कलम नहीं रोकूंगा और अगर कलम रुक गई तो मैं लिखना बंद कर दूंगा. महाभारत लेखन का कार्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन शुरू हुआ. वेदव्यास जी ने आंखें बंद करके गजानन को कहानी सुनानी शुरू की और 10 दिनों तक कहानी सुनाते रहे और गणपति लगातार लिखते रहे. लगातार 10 दिनों तक लिखने के बाद अनंत चौदस के दिन लेखन कार्य पूरा हुआ. जब 10 दिन बाद वेदव्यास ने आंखें खोली तो गणेश जी के शरीर का तापमान बढ़ा हुआ था. इसके बाद उन्हें पानी में नहलाया ताकि उनके शरीर का तापमान कम हो. तब से ही अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन की परंपरा शुरू हुई.