भारत के सात सबसे पवित्र शहरों में से एक द्वारका का भी नाम आता है. यहां पर कई ऐसे मंदिर हैं जो पूरी दुनिया में पहचाने जाते हैं. इसी में हनुमान जी का एक ऐसा मंदिर है जहां पर वह अपने पुत्र के साथ विराजमान है. हनुमान जी एकमात्र ऐसे देवता है जो साधु संतों के अलावा भगवानों के भी रक्षक है. उनके कारण तीनों लोकों की कोई भी शक्ति अपनी मनमानी नहीं कर सकती है. दुनिया में हनुमान जी के चमत्कारी सिद्ध पीठों की संख्या सैकड़ो में है. उन्ही स्थान में से एक हनुमान जी का ऐसा मंदिर है जहां उनके साथ-साथ उनके पुत्र की भी पूजा की जाती है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर किस तरह इस मंदिर की स्थापना हुई और बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी के पुत्र की उत्पत्ति की कहानी क्या है.
दंडी हनुमान मंदिर का परिचय गुजरात के द्वारका के पास चार किलोमीटर दूर भेट द्वारका स्थित है. यहीं पर हनुमान जी और मकरध्वज की मूर्ति स्थापित है जो दंडी हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां पहली बार हनुमान जी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे. इस मंदिर में मकरध्वज के साथ में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है. यह मंदिर 500 वर्ष पुराना है. भारत में यह पहला मंदिर है जहां हनुमान जी और मकरध्वज का मिलन दिखाया गया है. कहा जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में आते हैं उनकी मांगी हुई हर इच्छा पूरी होती है. अहिरावण ने भगवान श्री राम को इसी स्थान पर छिपा कर रखा था, जब हनुमान जी राम लक्ष्मण को लेने के लिए आए तब मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ. अंत में हनुमान जी ने उसे पराजित कर उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित की.
जब बजरंगबली ब्रह्मचारी हैं तो मकरध्वज कैसे हुए उनके पुत्र भगवान श्री राम के परम भक्त भगवान शंकर के 11 रुद्र अवतार श्री हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे फिर यह सोचने की बात है कि उनका पुत्र कहां से आया, जिस समय हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाथ द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया था. उस वक्त रावण ने उनकी पूछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूछ से पूरी लंका जला दी. जलती हुई पूछ की वजह से उन्हें वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वह समुद्र के जल से अपनी पूछ कि आग को बुझाने पहुंचे. उस वक्त कहा जाता है कि उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था. उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई थी और उससे एक पुत्र जन्म हुआ था जिसका नाम मकरध्वज था. वह हनुमान जी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था. जब हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण को लेने के लिए आए तब उनका मकरध्वज से युद्ध हुआ अंत में हनुमान जी ने उसे हराकर उसी की पूछ से उसे बांध दिया.
इस मंदिर की प्रमुख विशेषताएं 1. कहा जाता है कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी परंतु अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची और बराबर हो गई.
2. इस मंदिर में दूर-दूर से पिता और पुत्र आपसी मतभेद को खत्म करने के लिए आते हैं.
3. इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां की दोनों मूर्तियों में ना तो हनुमान जी के हाथ में और नहीं उनके पुत्र के हाथ में कोई अस्त्र-शस्त्र है. दोनों ही मूर्ति प्रसन्नचित मुद्रा में स्थापित है.
4. इस मंदिर के महंत के अनुसार भगवान हनुमान हर वर्ष चावल के दाने के बराबर पृथ्वी के नीचे जा रहे हैं और हनुमत के इस स्थान को छोड़कर जाते ही कलयुग का अंत हो जाएगा.