लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर एक बार फिर से सियासी बवाल मचा हुआ है. भारतीय जनता पार्टी ने पहले तो इस मामले पर असहमति जताई थी लेकिन अब नीतीश कुमार के सामने सरेंडर करते हुए हामी भर दी है. समय-समय पर यह मुद्दा नेताओं द्वारा उठाया जाता रहा है. कोई नेता इसके पक्ष में है तो वहीं कुछ इसके विपक्ष में है. इस बार बिहार में राजद और जदयु दोनों ही इसके पक्ष में है, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि अब भाजपा भी जातीय जनगणना के समर्थन में नजर आ रही है. यह कहना गलत नहीं होगा कि जातीय जनगणना से एक बार फिर सामाजिक सद्भावना टूटती नजर आने वाली है. खास तौर पर सरकार ओबीसी वर्ग को बरगलाने के लिए एक तरह का साजिश रच रही है, जो आम जनता की समझ से परे है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर बिहार में जाति जनगणना करने के पीछे सरकार का क्या मकसद है और इसके पीछे किस तरह से सरकार अपनी रणनीति तैयार कर रही है.
बिहार में जाति जनगणना का परिचय जाति जनगणना से यह साफ समझ जा सकता है की जाति के आधार पर लोगों की गणना करना. इससे सरकार को विकास योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है किस तबके को कितनी हिस्सेदारी मिली, कौन हिस्सेदारी से वंचित रहा, इन बातों का पता चलता है, लेकिन यह केवल दो शब्दों का खेल नहीं है. इसके अंदर सरकार की कई तरह की मंशा छिपी हुई है. वैसे तो भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है लेकिन जातिगत जनगणना के तहत अब जनगणना के दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाएगी, जिससे यह पता चलेगा कि किस जाति की कितनी आबादी है. 7 जनवरी से शुरू हुए पहले चरण में करीब 5.18 लाख कर्मचारी 2 करोड़ 589000497 परिवार तक पहुंचे. यह चरण 21 जनवरी तक चला. दूसरे चरण में 1 से 30 अप्रैल तक जाती और आर्थिक जनगणना का काम हुआ जिसमें लोगों के शिक्षा का स्तर नौकरी के प्रकार प्राइवेट- सरकारी के बारे में पूछा गया. यह जनगणना राज्य और देश के विकास के लिए फायदेमंद होगी.
बिहार के लोगों को एक बार फिर जात-पात में बांटकर राजनीतिक लाभ साधने की तैयारी में महागठबंधन भले ही सरकार यह कहे कि जातीय जनगणना से सरकार को विकास की योजनाओं का खाका तैयार करने में मदद मिलेगी और राज्य के विकास के लिए सरकार कई तरह की नीतियां बनाएगी, लेकिन परदे के पीछे तो कुछ और ही खेल रचा जा रहा है. जातीय जनगणना के तर्ज पर तमाम सरकारी या राजनीतिक दल उद्देश्य को लेकर जो भी दावे करें हकीकत यह है कि पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय के वोट में हिस्सा पाने की कवायत है. इसी क्रम में सत्ता पक्ष और विपक्ष मंडल राजनीति के बदले स्वरूप में अपना दबदबा हासिल करने के लिए एक के बाद एक सियासी तीर चला रहे हैं. बिहार सरकार ने इसमें आकडे़ जारी कर 2024 से पहले अपना सबसे पहले तुरुप का इक्का फेंक दिया है.